अनन्यगति का अर्थ
[ anenyegati ]
अनन्यगति उदाहरण वाक्य
परिभाषा
विशेषणउदाहरण वाक्य
- विनम्र प्रार्थना से ही अहंता ग्रस्त जीव अनन्यगति युक्त हो पाता है।
- इसीलिए उन्होंने स्वयं श्रीरामके श्रीमुखसे कहलवाया था कि , मुझे सेवक प्रिय है तथा उनमें भी अनन्यगति सेवक विशेषरूपसे प्रिय है ।
- सब कोई मुझे समदर्शी कहते हैं ( मेरे लिए न कोई प्रिय है न अप्रिय ) पर मुझको सेवक प्रिय है , क्योंकि वह अनन्यगति होता है ( मुझे छोड़कर उसको कोई दूसरा सहारा नहीं होता ) ॥ 4 ॥
- भगवत्-शरणागति का तात्पर्य होता है कि कायेन वाचा मनसा पूर्णत : स्वयं को अकिञ्चन और अनन्यगति मानते हुए भगवान् के चरणारविन्दों में समर्पित कर देना और जब हम किसी के शरणागत होते हैं तो उन्हीं के चिह्न , उन्हीं का तिलक , उन्हीं का नाम और उन्हीं के मन्त्र ही हम धारण करते हैं क्योंकि हम केवल व केवल उन शरणागतवत्सल प्रभु के ही हैं।