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अनाप्त का अर्थ

[ anaapet ]
अनाप्त उदाहरण वाक्य

परिभाषा

विशेषण
  1. जो प्रवीण न हो:"अनाड़ी खिलाड़ियों ने भी अच्छे खेल का प्रदर्शन किया"
    पर्याय: अनाड़ी, अप्रवीण, अकुशल, अदक्ष, अनिपुण, अधकचरा, अनारी, अनैपुण, अपटु, अपाटव, अपात्र, अल्हड़, अविज्ञ, अशिक्षित
  2. जो प्राप्त न हुआ हो:"मेहनती व्यक्ति के लिए दुनिया में कुछ भी अप्राप्त नहीं है"
    पर्याय: अप्राप्त, अलब्ध, अनवाप्त, अनापन्न, अलभ्य, अलह
  3. / झूठ बात मत बोलो"
    पर्याय: झूठा, असत्य, गलत, ग़लत, मिथ्या, मिथ्यापूर्ण, असत्यतापूर्ण, झूठ, मृषा, असत्, असाच, अनृत, अलीह, अनसत्त, अमूलक, अयथा, अलीक, अविद्यमान
  4. जो अपना न हो:"हम सब को एक दिन इस अनात्म जगत का परित्याग करना होगा"
    पर्याय: अनात्म, आत्मरहित, अनात्मीय

उदाहरण वाक्य

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  1. जो अनंत है , अखंड है , अनाप्त है और पूरी सृष्टि जिसमें समाई है .
  2. जो अनंत है , अखंड है , अनाप्त है और पूरी सृष्टि जिसमें समाई है .
  3. बढ़ते राजा का हाथ उठा करता आवर्जन , बोला :“श्रेय नहीं कुछ मेरा :मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य मेंवीणा के माध्यम से अपने को मैंनेसब कुछ को सौंप दिया था -सुना आपने जो वह मेरा नहीं,न वीणा का था :वह तो सब कुछ की तथता थीमहाशून्यवह महामौनअविभाज्य, अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेयजो शब्दहीनसबमें गाता है ।”नमस्कार कर मुड़ा प्रियंवद केशकम्बली।
  4. बढ़ते राजा का हाथ उठा करता आवर्जन , बोला : “श्रेय नहीं कुछ मेरा : मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में वीणा के माध्यम से अपने को मैंने सब कुछ को सौंप दिया था - सुना आपने जो वह मेरा नहीं, न वीणा का था : वह तो सब कुछ की तथता थी महाशून्य वह महामौन अविभाज्य, अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेय जो शब्दहीन सबमें गाता है ।”
  5. बढ़ते राजा का हाथ उठा करता आवर्जन , बोला : “श्रेय नहीं कुछ मेरा : मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में वीणा के माध्यम से अपने को मैंने सब कुछ को सौंप दिया था - सुना आपने जो वह मेरा नहीं, न वीणा का था : वह तो सब कुछ की तथता थी महाशून्य वह महामौन अविभाज्य, अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेय जो शब्दहीन सबमें गाता है ।”
  6. बढ़ते राजा का हाथ उठा करता आवर्जन , बोला : ” श्रेय नहीं कुछ मेरा : मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में वीणा के माध्यम से अपने को मैंने सब कुछ को सौंप दिया था - सुना आपने जो वह मेरा नहीं , न वीणा का था : वह तो सब कुछ की तथता थी महाशून्य वह महामौन अविभाज्य , अनाप्त , अद्रवित , अप्रमेय जो शब्दहीन सबमें गाता है ।
  7. बढ़ते राजा का हाथ उठा करता आवर्जन , बोला : ” श्रेय नहीं कुछ मेरा : मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में वीणा के माध्यम से अपने को मैंने सब कुछ को सौंप दिया था - सुना आपने जो वह मेरा नहीं , न वीणा का था : वह तो सब कुछ की तथता थी महाशून्य वह महामौन अविभाज्य , अनाप्त , अद्रवित , अप्रमेय जो शब्दहीन सबमें गाता है ।
  8. असाध्य वीणा में वीणावादक केशकम्बली के इन शब्दों पर ध्यान दें तो महसूस होता है कि यहां अज्ञेय का स्वर समर्पण की पराकाष्ठा पर पहुँच जाता है- ' श्रेय नहीं कुछ मेरा- मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में वीणा के माध्यम से अपने को मैंने सब कुछ को सौंप दिया था सुना आपने जो वह मेरा नहीं, न वीणा का था वह तो सब कुछ थी, तथता थी महाशून्य, वह महामौन अविभाज्य अनाप्त, अद्रवित अप्रमेय जो शब्दहीन सबमें गाता है।
  9. असाध्य वीणा में वीणावादक केशकम्बली के इन शब्दों पर ध्यान दें तो महसूस होता है कि यहां अज्ञेय का स्वर समर्पण की पराकाष्ठा पर पहुँच जाता है- ' श्रेय नहीं कुछ मेरा- मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में वीणा के माध्यम से अपने को मैंने सब कुछ को सौंप दिया था सुना आपने जो वह मेरा नहीं , न वीणा का था वह तो सब कुछ थी , तथता थी महाशून्य , वह महामौन अविभाज्य अनाप्त , अद्रवित अप्रमेय जो शब्दहीन सबमें गाता है।
  10. और जरा प्रियंवद कि साधना को देखें | उसका समर्पण देखें | क्या कहता है प्रियंवद , राजा को - “ श्रेय नहीं कुछ मेरा / मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में / वीणा के माध्यम से अपने को मैंने सब कुछ को सौंप दिया था / सुना आपने जो वह मेरा नहीं / न वीणा का था / वह तो सब कुछ की तथता थी / महाशून्य / वह महामौन / अविभाज्य , अनाप्त अद्रवित , अप्रमेय जो शब्दहीन सब में गाता है ”


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