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अर्ध-मृत का अर्थ

[ aredh-merit ]
अर्ध-मृत उदाहरण वाक्य

परिभाषा

विशेषण
  1. / डर के मारे वह अधमरा हो गया था"
    पर्याय: अधमरा, अधमुआ, अर्धमृत, अर्ध मृत
  2. बहुत अधिक थका हुआ:"ऑफ़िस से लौटी अधमरी सीमा घर का कोई काम ठीक से नहीं कर पा रही है"
    पर्याय: अधमरा, अधमुआ, अर्धमृत, अर्ध मृत

उदाहरण वाक्य

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  1. वधू मूर्छिता , पिता अर्ध-मृत, दुखिता माता स्पंदन-हीन
  2. वैसे हमारे ज्ञानी पूर्वज निद्रावस्था को अर्ध-मृत अवस्था कह गए , और आदमी कई प्रकार की जंगली जानवरों की भी आवाजें निकालता है - सोते-जागते ! ...
  3. और यही नहीं ' योग-निद्रा ' ( बिना विचार वाली अवस्था , मृत-प्राय समान ) के स्थान पर पशु जगत में निद्रावस्था , अर्थान अर्ध-मृत अवस्था , में स्वप्न देखते हुए भी हम आनंद के साथ भय की अनुभूति अधिकतर करते हैं ...
  4. धीरे-धीरे मेंरे चारो ओर असंख्य अर्ध-मृत आत्माएं रत्ती भर ज़िंदगी , और साँस भर मुक्त हवा के लिये बेचैनी से करवटें बदलती हुई सिर उठाने लगती हैं मुझे अपने अंदर सिर हिलाती ख़ामोश रेंगती बेचैन भीड़ का एहसास होता है, जिसमें बाहर बर्फ़ की ठंडक, और, अंदर सदियों की आग पिघल रही होती है
  5. किन्तु शायद वो समय होगा जब आप ' प्राचीन ज्ञानी ' समान सोचने लग जाएँ कि कैमरा / प्रोजेक्टर तो हर व्यक्ति के भीतर पैदाइश से था , ( जिसमें वो निद्रावस्था अथवा ' अर्ध-मृत ' अवस्था में स्वप्न देखता आया - जिसमें उसका कोई जोर नहीं चलता था यद्यपि ) , और उसने कभी क्यूँ नहीं सोचा कि वो कहाँ से और कैसे आया था ...
  6. किन्तु शायद वो समय होगा जब आप ' प्राचीन ज्ञानी ' समान सोचने लग जाएँ कि कैमरा / प्रोजेक्टर तो हर व्यक्ति के भीतर पैदाइश से था , ( जिसमें वो निद्रावस्था अथवा ' अर्ध-मृत ' अवस्था में स्वप्न देखता आया - जिसमें उसका कोई जोर नहीं चलता था यद्यपि ) , और उसने कभी क्यूँ नहीं सोचा कि वो कहाँ से और कैसे आया था ...
  7. - गजानन माधव मुक्तिबोध मृत्यु और कवि घनी रात , बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, निस्तब्ध वनंतर व्यापक अंधकार में सिकुड़ी सोयी नर की बस्ती भयकर है निस्तब्ध गगन, रोती-सी सरिता-धार चली गहराती, जीवन-लीला को समाप्त कर मरण-सेज पर है कोई नर बहुत संकुचित छोटा घर है, दीपालोकित फिर भी धुंधला, वधू मूर्छिता, पिता अर्ध-मृत, दुखिता माता स्पंदन-हीन घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, कवि का मन गीला “ये सब क्षनिक, क्षनिक जीवन है, मानव जीवन है क्षण-भंगुर” ।
  8. इस पृष्ठभूमि से कि काल सतयुग से कलियुग को दर्शाते जाना गया , एक बार ही नहीं , अपितु १ ० ८ ० बार , ब्रह्मा के एक दिन में जो चार अरब से अधिक जाना गया , और उसके पश्चात उसकी उतनी ही लम्बी रात ,,, जबकि उसके प्रतिरूप अथवा प्रतिबिम्ब मानव की रात और दिन दोनों औसतन १ २ घंटे के ही होते हैं , और निद्रा को अर्ध-मृत अवस्था कहा गया और जीवन काल मात्र १ ०० वर्ष ( + / - ) !
  9. घनी रात मुक्तिबोध घनी रात , बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, निस्तब्ध वनंतर व्यापक अंधकार में सिकुड़ी सोयी नर की बस्ती भयकर है निस्तब्ध गगन, रोती-सी सरिता-धार चली गहराती, जीवन-लीला को समाप्त कर मरण-सेज पर है कोई नर बहुत संकुचित छोटा घर है, दीपालोकित फिर भी धुंधला, वधू मूर्छिता, पिता अर्ध-मृत, दुखिता माता स्पंदन-हीन घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, कवि का मन गीला “ये सब क्षनिक, क्षनिक जीवन है, मानव जीवन है क्षण-भंगुर” क्षण-भंगुरता के इस क्षण में जीवन की गति, जीवन का स्वर दो सौ वर्ष आयु होती तो क्या अधिक सुखी होता नर?
  10. और जिनका निदान अभी संभव नहीं हो पाया है और आज अज्ञानता वश , काल की तथाकथित उलटी चाल के कारण 'कोलावारी डी' पर समय पहुँच गया है :)... वैसे हमारे ज्ञानी पूर्वज निद्रावस्था को अर्ध-मृत अवस्था कह गए, और आदमी कई प्रकार की जंगली जानवरों की भी आवाजें निकालता है - सोते-जागते!... खर्राटे भी उनमें से एक है, जिनके विभिन्न प्रकार होते हैं ...और जो आदमी की उत्पति के दौरान बिल्ली के परिवार का एक सदस्य, कुछेक के शायर और कुछ के शेर भी होने को भी संभवतः दर्शाता है ('सास भी कभी बहु थी' समान :)


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