आक्रन्द का अर्थ
[ aakerned ]
आक्रन्द उदाहरण वाक्य
परिभाषा
संज्ञा- रोने की क्रिया:"विदाई के समय उसकी रुलाई थम नहीं रही थी"
पर्याय: रुलाई, रुआई, रोना, रोदन, रुदन, अश्रुपात, क्रंदन, क्रन्दन, आक्रंदन, आक्रन्दन, आक्रंद, क्रंद, क्रन्द, क्रोश - वह ज़ोर का शब्द जो किसी को पुकारने के लिए किया जाय:"मालिक की पुकार सुनकर नौकर दौड़ता हुआ आया"
पर्याय: पुकार, हाँक, हाँका, हांक, हांका, टेर, बुलाहट, हाव, अहान, आक्रंद, आक्रंदन, आक्रन्दन, आवाज, आवाज़, हेरी, आहाँ, आहां, क्रोश - कुछ समय तक बनी रहने वाली तेज ध्वनि:"युद्ध का घोष सुनकर कायरों के दिल दहल उठे"
पर्याय: घोष, नाद, आक्रंद, आरव - रोने से उत्पन्न शब्द:"उसकी रुलाई दूर-दूर तक सुनाई दे रही थी"
पर्याय: रुलाई, रुआई, रोना, रोदन, रुदन, क्रंदन, क्रन्दन, आक्रंद, क्रंद, क्रन्द, क्रोश - ज्योतिष में, एक ग्रह का दूसरे ग्रह से प्रबल होने की क्रिया:"ज्योतिष आक्रंद की जानकारी दे रहा है"
पर्याय: आक्रंद - प्राचीन भारतीय राजनीति में गुप्त रूप से प्रधान शत्रु की सहायता करनेवाला देश या राज्य:"राजा ने आक्रंद की गतिविधियों की जानकारी लेने के लिए सिपाही भेजा है"
पर्याय: आक्रंद
उदाहरण वाक्य
अधिक: आगे- एक बार मध्य रात्रि के समय कोई दीन-दुःखी महिला आक्रन्द कर रही हो ऐसी आवाज आयी।
- ब्रिटिश प्रतिनिधी कोनराड कोर्फिल्ड ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि “अन्तिम यात्रा के समय रास्ते के दोनों तरफ राज्य की जनता आक्रन्द कर रही थी।“
- ब्रिटिश प्रतिनिधी कोनराड कोर्फिल्ड ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि “ अन्तिम यात्रा के समय रास्ते के दोनों तरफ राज्य की जनता आक्रन्द कर रही थी।
- श्री हनुमानजी को सुलाकर वो फल-फूल लेने गये थे इसी समय बाल हनुमान भूख एवं अपनी माता की अनुपस्थिति में भूख के कारण आक्रन्द करने लगे ।
- ऐसी क्रूर क्रिया में गहराई से ' कुरबानी ' ( समर्पण ) की भावना कैसे महसूस करेगा ? कानों से वह पशु का मरणांतक आक्रन्द सुनेगा , आंखों से वह भयंकर और जीवंत प्राणांत होते देखेगा , मरण क्रिया की तड़प व रक्तमांस के लोथडे देखेगा।
- घर के छ : भेद होते है , इनमें एक शाला , द्विशाला , त्रिशाला , चतुष्शाला , सप्तशाला , और दसशाला , इन दसों शालाओं में प्रत्येक के १ ६ भेद होते है , ध्रुव , धान्य , जय , नन्द , खर , कान्त , मनोरम , सुमुख , दिर्मुख , क्रूर , शत्रुद , स्वर्णद , क्षय , आक्रन्द , विपुल और विजय , नाम के गृहो होते है , चार अक्षरों के प्रस्तार भेद से क्रमश : इन गृहों की गणना करनी चाहिये।
- घर के छ : भेद होते है , इनमें एक शाला , द्विशाला , त्रिशाला , चतुष्शाला , सप्तशाला , और दसशाला , इन दसों शालाओं में प्रत्येक के १ ६ भेद होते है , ध्रुव , धान्य , जय , नन्द , खर , कान्त , मनोरम , सुमुख , दिर्मुख , क्रूर , शत्रुद , स्वर्णद , क्षय , आक्रन्द , विपुल और विजय , नाम के गृहो होते है , चार अक्षरों के प्रस्तार भेद से क्रमश : इन गृहों की गणना करनी चाहिये।