आतुरी का अर्थ
[ aaturi ]
आतुरी उदाहरण वाक्य
परिभाषा
संज्ञा- उद्विग्न होने की अवस्था या भाव:"उद्विग्नता के कारण इस कार्य में मैं अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा हूँ"
पर्याय: उद्विग्नता, अकुलाहट, विकलता, अशांति, अशान्ति, आकुलता, व्याकुलता, बेचैनी, तिलमिलाहट, तलमलाहट, परेशानी, हैरानी, अचैन, अनचैन, अनवस्था, अभिताप, बेआरामी, बिकलाई, बिकलता, अवसेर, आकली, आकुलत्व, आतुर्य, ताम - आतुर होने की अवस्था:"दो साल घर से दूर रहने के बाद घरवालों से मिलने की उसकी आतुरता बढ़ती जा रही थी"
पर्याय: आतुरता, अधीरता, उतावलापन, बेक़रारी, बेचैनी, बेताबी, उतावली, व्यग्रता, छटपटी, बेसब्री, उत्कंठा, उत्कण्ठा, कातरता, अतुराई, अधृति, अधैर्य, अधीरज, अस्थिरता, आतुरताई, आतुरतायी, अनवस्थित, डावाँडोलपन, डावांडोलपन, अस्थिति, आतुर्य, सुगबुगाहट
उदाहरण वाक्य
अधिक: आगे- काम आतुरी नारि . . don ' t compromise ..
- अनिल पुरोहित वीरों की इस आतुरी का मनोवैज्ञानिक ( और शरीर वैज्ञानिक भी ) कारण बताते हैं- क्षत्रिय हैं ,
- सब चंगा मानो , मैंने आतुरी दबायी, और चलती चलो, ठोढ़ी राइट, कंधे मचान, बांहें मार्च ऑन, सांसें घमासान, पैर निर्दयी, पैर बेईमान।
- तो दूसरे किसी कवि कि कविता को सुनाने की शहरयार साहब की ऐसी यह आतुरी , उत्सुकता, उमंग और छटपटाती-सी चाहत और जो भी हो पर यह ज़रूर है कि वह नज़्म ऐसी-वैसी कोई साधारण-कमज़ोर नज़्म तो नहीं ही होगी, जिसने शहरयार साहब को इतनी मज़बूती से अपनी गिरफ़्त में लिया हुआ है.... ! जी - नज़्म यूँ शुरू होती है -
- तो दूसरे किसी कवि कि कविता को सुनाने की शहरयार साहब की ऐसी यह आतुरी , उत्सुकता , उमंग और छटपटाती-सी चाहत और जो भी हो पर यह ज़रूर है कि वह नज़्म ऐसी-वैसी कोई साधारण-कमज़ोर नज़्म तो नहीं ही होगी , जिसने शहरयार साहब को इतनी मज़बूती से अपनी गिरफ़्त में लिया हुआ है .... ! जी - नज़्म यूँ शुरू होती है -
- तो दूसरे किसी कवि कि कविता को सुनाने की शहरयार साहब की ऐसी यह आतुरी , उत्सुकता, उमंग और छटपटाती-सी चाहत और जो भी हो पर यह ज़रूर है कि वह नज़्म ऐसी-वैसी कोई साधारण-कमज़ोर नज़्म तो नहीं ही होगी, जिसने शहरयार साहब को इतनी मज़बूती से अपनी गिरफ़्त में लिया हुआ है.... ! जी - नज़्म यूँ शुरू होती है - तुम्हीं कहो क्या करना है
- तो दूसरे किसी कवि कि कविता को सुनाने की शहरयार साहब की ऐसी यह आतुरी , उत्सुकता, उमंग और छटपटाती-सी चाहत और जो भी हो पर यह ज़रूर है कि वह नज़्म ऐसी-वैसी कोई साधारण-कमज़ोर नज़्म तो नहीं ही होगी, जिसने शहरयार साहब को इतनी मज़बूती से अपनी गिरफ़्त में लिया हुआ है.... ! जी - नज़्म यूँ शुरू होती है - जब नज़्म को सुनाना शुरू किया था तो मन एकदम अनमना-सा था.