त्रिदोषज का अर्थ
[ teridosej ]
त्रिदोषज उदाहरण वाक्य
परिभाषा
विशेषण- वात, पित्त और कफ इन तीनों से उत्पन्न:"सन्निपात रोग एक तरह का त्रिदोषज रोग है"
उदाहरण वाक्य
अधिक: आगे- वायुजन्य , पित्तजन्य , कफजन्य , त्रिदोषज , रक्तजन्य और दूषित।
- वायुजन्य , पित्तजन्य , कफजन्य , त्रिदोषज , रक्तजन्य और दूषित।
- त्रिदोषज : उपर्युक्त तीनों दोषों से उत्पन्न जुकाम बार-बार हो जाता हैे।
- त्रिदोषज में नाना प्रकार की व्यथा होती है और मिश्रित लक्षण मिलते हैं।
- तीनो दोषो के कुपित होने बाले रोगो को त्रिदोषज रोग कहा जाता है।
- 4 . त्रिदोषज : ऊपरी तीनों दोषों से उत्पन्न जुकाम बार-बार हो जाता है।
- 4 . त्रिदोषज : ऊपरी तीनों दोषों से उत्पन्न जुकाम बार-बार हो जाता है।
- ) मात्रा-५०० मि. ग्रा.. गोमूत्र के साथ दें. ४ त्रिदोषज पाण्डुरोग-पञ्चानन वटी (पाण्डु)-शु पारद, शु.
- सन्निपात या त्रिदोषज मूत्रकच्छ में सभी लक्षण एक साथ होते हैं यह मूत्रकच्छ कष्टसाध्य है।
- त्रिदोषज पाण्डु-सभी वातादि दोषों के कुपित करने वाले आहार-~ विहार के सेवन करने से त्रिदोषजपाण्डु रोग उत्पन्न होता है .