देव-ऋण का अर्थ
[ dev-rin ]
देव-ऋण उदाहरण वाक्य
उदाहरण वाक्य
अधिक: आगे- उसके लिए घर में कोई स्थान नहीं होगा , तो व्यक्ति को देव-ऋण से पीड़ित होना पड़ेगा।
- भारतीय संस्कृति के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण होते हैं - देव-ऋण , ऋषि-ऋण और पितृ-ऋण।
- ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले- ” हे कुन्ती ! मेरा जन्म लेना ही व्यर्थ हो रहा है , क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण , ऋषि-ऋण , देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता।
- ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले- ” हे कुन्ती ! मेरा जन्म लेना ही व्यर्थ हो रहा है , क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण , ऋषि-ऋण , देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता।
- और चूँकि देव-ऋण और पितृ-ऋण देनेवाले-दोनों ही किस्म के लोग एक ही वर्ग और एक ही पार्टी के हैं , इसलिए होरी को इन ऋणों से अलग-अलग तंत्र में भले ही फर्क मालूम पड़े, ऋण देनेवाले जानते हैं कि वे एक ही बिरादरी के हैं।
- ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले , “हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?” कुन्ती बोली, “हे आर्यपुत्र! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मन्त्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूँ।
- ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले , “हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?” कुन्ती बोली, “हे आर्यपुत्र! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मन्त्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूँ।
- “ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले , ”हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?“ कुन्ती बोली, ”हे आर्यपुत्र! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मन्त्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूँ।
- दूसरा ऋण , उसी पुराणपंथी भाषा में पितृ-ऋण है जो पिता की कृपा से किसी जाति-विशेष में उत्पन्न होने के कारण मुंडन, छेदन, ब्याह, गौना, दसवाँ, तेरहीं आदि रस्मों को निपटाने के लिए फिर उन्हीं दुलारी सहुआइनों, उन्हीं दातादीनों, उन्हीं मंगरू साहुओं से लेना पड़ता है जो अब पहले से भी ज्यादा चतुर हैं, जिनके लड़के अब आई. ए. एस. में घुसकर या बिजनेस मैनेजमेंट की डिग्री लेकर उसी तबके में घुस रहे हैं जो देव-ऋण बाँटनेवालों का है।