निरुद्विग्न का अर्थ
[ nirudevigan ]
निरुद्विग्न उदाहरण वाक्य
परिभाषा
विशेषणउदाहरण वाक्य
अधिक: आगे- बस , तीन पेज ! फिर मैं निश्चिन्त , निरुद्विग्न मन ले कर उठूँगी , भगोने में पानी भर कर गैस पर चढा दूँगी , और खड़ी हो जाऊँगीं वहीं उसी रस में डूबी ।
- बस , तीन पेज ! फिर मैं निश्चिन्त , निरुद्विग्न मन ले कर उठूँगी , भगोने में पानी भर कर गैस पर चढा दूँगी , और खड़ी हो जाऊँगीं वहीं उसी रस में डूबी ।
- सहयात्रियों के साथ अनुभूतियाँ बाँटने के दिन हैं , निरुद्विग्न भाव से धारा को देखने के ।जीवन और पानी बहते हुए ही अच्छे ! तरंगों से रहित जल और भावना कल्पना से रहित जीवन क्या रह जायेगा -निरा उदासीन , एकदम फीका और सपाट ।
- सहयात्रियों के साथ अनुभूतियाँ बाँटने के दिन हैं , निरुद्विग्न भाव से धारा को देखने के ।जीवन और पानी बहते हुए ही अच्छे ! तरंगों से रहित जल और भावना कल्पना से रहित जीवन क्या रह जायेगा -निरा उदासीन , एकदम फीका और सपाट ।
- कभी कभी लगता था यही सच है मेरी सीमाबद्ध जीवदशा उसके भीतर सीमित निरुताप यौवन एक दिन भूल जाऊँगी तुम्हारे छूने की पहली वेला को आँखों में आँख भर निरुद्विग्न दृष्टि लेकर पहले की देखती रहती हूँ कि कदंब पर फूल खिलते है और मुरझाते है झिलमिलाती चाँदनी में नदी का जल
- तब लगता है , इतना सब झेलते हुए भी तुम कितने सहज रह लेते हो -कितने निरुद्विग्न , प्रसन्न-चित् त. ' कुछ रुकी द्रौपदी , फिर बोली , ' जो बीत गया उससे मुझे क्या , सोच कर शान्त रहना चाहती हूँ पर जो बार-बार घिर आता है , निकाल नहीं पाती मन से .
- बाद में , जब आप ध्यान से बाहर निकलकर अपने दैनिक जीवन संसार में लौटते हैं तब वह सुलभ क्यों नहीं रहती ? ' दोबारा 12 नवंबर को अपने द्वंद्व को दर्ज किया ‘ बड़ा डर लगता है , ध्यान में चरितार्थ अपनी असामान्य शांति और निरुद्विग्न अवस्था को स्मरण करके उनको लिपिबद्ध करने का उपक्रम करना ।
- विस्मित-चकित पाँच जन , छठे युठिष्ठिर सदा की तरह मौन-शान्त , निरुद्विग्न ! नीतिज्ञ , संयत , विचारवान धर्मराज ! ( ” मैं भीष्म बोल रहा हूँ ' में श्री भगवती चरण वर्मा ने कथन- कर्ता युधिष्ठिर को बताया है ) पाँच ब्राह्मण कुमारों का दैनिक भिक्षाटन नहीं था , यह दान में मिली चीज़ नहीं थी , वीर्य-शुल्का कन्या अपनी सामर्थ्य से जीती थी पार्थ ने .
- विस्मित-चकित पाँच जन , छठे युठिष्ठिर सदा की तरह मौन-शान्त , निरुद्विग्न ! नीतिज्ञ , संयत , विचारवान धर्मराज ! ( ” मैं भीष्म बोल रहा हूँ ' में श्री भगवती चरण वर्मा ने कथन- कर्ता युधिष्ठिर को बताया है ) पाँच ब्राह्मण कुमारों का दैनिक भिक्षाटन नहीं था , यह दान में मिली चीज़ नहीं थी , वीर्य-शुल्का कन्या अपनी सामर्थ्य से जीती थी पार्थ ने .