ब्रह्मरूपिणी का अर्थ
[ berhemrupini ]
ब्रह्मरूपिणी उदाहरण वाक्य
परिभाषा
संज्ञाउदाहरण वाक्य
- सार यह है कि गायत्री ब्रह्मरूपिणी है ।।
- ऐसे सिंह के ऊपर आरोहण की हुई सिंहवासनी माता दुर्गा हैं जो कि शुद्ध गुणमयी ब्रह्मरूपिणी सर्वव्यापिनी और दशदिगरूपी दस हस्तों में शस्त्र धारण पूर्वक पूर्ण शक्तिशालिनी है ।।
- बुद्धि का प्रसार कर देती है सृजन में हो के जुष्ट-तुष्ट , पुष्ट करती अपुष्ट को “सूर” को भी दिव्य दृष्टि करती प्रदान है जिसको भी चाहती है उसको ही पल में उग्र, ब्रह्म, ऋषि औ सुमेधा बना देती है किसी को बनाती व्यास, भास, रस-खान है ऐसी मया-ममता की मूर्ति हंस-वाहिनी, वाक ब्रह्मरूपिणी को शतशः प्रणाम हैं।
- बुद्धि का प्रसार कर देती है सृजन में हो के जुष्ट-तुष्ट , पुष्ट करती अपुष्ट को “ सूर ” को भी दिव्य दृष्टि करती प्रदान है जिसको भी चाहती है उसको ही पल में उग्र , ब्रह्म , ऋषि औ सुमेधा बना देती है किसी को बनाती व्यास , भास , रस-खान है ऐसी मया-ममता की मूर्ति हंस-वाहिनी , वाक ब्रह्मरूपिणी को शतशः प्रणाम हैं।
- सूक्ष्म जगत् और स्थूल जगत् दोनों ही में ब्रह्मरूपिणी ब्रह्मशक्ति जगत् और भक्त के कल्याणार्थ अपने नैमित्तिक रूप में आविर्भूत होती है | राजा सुरथ और समाधि वैश्य के हेतु भक्त कल्याणार्थ आविर्भाव हुआ | तीनों चरित्रों में वर्णित आविर्भाव स्थूल और सूक्ष्म जगत् के निमित्त से हुआ | वह भगवती ज्ञानी भक्तों के लिये ब्रह्मस्वरूपा , उपासकों के लिये ईश्वरीरूपा , और निष्काम यज्ञनिष्ठ भक्तों के लिये विराट्स्वरूपा है :