मित्रवान का अर्थ
[ mitervaan ]
मित्रवान उदाहरण वाक्य
परिभाषा
विशेषणउदाहरण वाक्य
अधिक: आगे- मित्रवान कहता हैः वानर-राज के इस प्रकार बताने पर मैं प्रसन्नता पूर्वक बकरी और बाघ के साथ उस मन्दिर की ओर गया।
- आत्म-ज्ञानी संत ने कहा : ब्रह्मन् ! सौपुर ग्राम का निवासी मित्रवान , जो बकरियों का चरवाहा है , ' वही तुम्हें उपदेश देगा।
- श्रीभगवान कहते हैं : प्रिये ! मित्रवान के इस प्रकार आदेश देने पर देव शर्मा ने उसका पूजन किया और उसे प्रणाम करके पुरन्दरपुर की राह ली।
- श्रीभगवान कहते हैं : प्रिये ! मित्रवान के इस प्रकार आदेश देने पर देव शर्मा ने उसका पूजन किया और उसे प्रणाम करके पुरन्दरपुर की राह ली।
- मित्रवान ने भी अपने मस्तक को झुकाकर देव शर्मा का सत्कार किया , तदनन्तर विद्वान ब्राह्मण देव शर्मा अनन्य चित्त से मित्रवान के समीप गया और जब उसके ध्यान का समय समाप्त हो गया। तब .....
- मित्रवान ने भी अपने मस्तक को झुकाकर देव शर्मा का सत्कार किया , तदनन्तर विद्वान ब्राह्मण देव शर्मा अनन्य चित्त से मित्रवान के समीप गया और जब उसके ध्यान का समय समाप्त हो गया। तब .....
- ' यह सुनकर देव शर्मा ने महात्मा के चरणों की वन्दना की और सौपुर ग्राम के लिये चल दिया , समृद्ध-शाली सौपुर ग्राम में पहुँच कर उसने उत्तर भाग में एक विशाल वन देखा , उसी वन में नदी के किनारे एक शिला पर मित्रवान बैठा था , उसके नेत्र आनन्द से निश्चल हो रहे थे , वह अपलक दृष्टि से देख रहा था।
- वह स्थान आपस का स्वाभाविक वैर छोड़कर एकत्रित हुए परस्पर विरोधी जन्तुओं से घिरा था , जहाँ उद्यान में मन्द-मन्द वायु चल रही थी , मृगों के झुण्ड शान्त-भाव से बैठे थे और मित्रवान दया से भरी हुई आनन्द विभोर दृष्टि से पृथ्वी पर मानो अमृत छिड़क रहा था , इस रूप में उसे देखकर देव शर्मा का मन प्रसन्न हो गया , वे उत्सुक होकर बड़ी विनय के साथ मित्रवान के पास गया।
- वह स्थान आपस का स्वाभाविक वैर छोड़कर एकत्रित हुए परस्पर विरोधी जन्तुओं से घिरा था , जहाँ उद्यान में मन्द-मन्द वायु चल रही थी , मृगों के झुण्ड शान्त-भाव से बैठे थे और मित्रवान दया से भरी हुई आनन्द विभोर दृष्टि से पृथ्वी पर मानो अमृत छिड़क रहा था , इस रूप में उसे देखकर देव शर्मा का मन प्रसन्न हो गया , वे उत्सुक होकर बड़ी विनय के साथ मित्रवान के पास गया।
- मित्रवान ने कहाः ' महानुभाव ! एक समय की बात है , मैं वन के भीतर बकरियों की रक्षा कर रहा था , इतने में ही एक भयंकर बाघ पर मेरी दृष्टि पड़ी , जो मानो सब को खा लेना चाहता था , मैं मृत्यु से डरता था , इसलिए बाघ को आते देख बकरियों के झुंड को आगे करके वहाँ से भाग चला , किंतु एक बकरी तुरन्त ही सारा भय छोड़कर नदी के किनारे उस बाघ के पास चली गयी , फिर तो बाघ भी द्वेष छोड़कर चुपचाप खड़ा हो गया।