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शुद्ध अंतःकरण उदाहरण वाक्य

शुद्ध अंतःकरण अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. जैसे दर्पण में (सामने आई हुई वस्तु दिखती है), वैसे ही शुद्ध अंतःकरण में (ब्रह्म के दर्शन होते हैं) जैसे स्वप्न में (वस्तुएं स्पष्ट दिखलाई देती हैं), उसी प्रकार पितृलोक में (परमेश्वर दिखता है) ।
  2. जब प्रश्नकत्र्ता, निश्छल हो कर एवं शुद्ध अंतःकरण से, टैरो कार्ड के बिखरे समूह में से प्रथम पत्ते को निकालता है, तो उस समय-विशेष में जातक जिस मानसिक उतार-चढ़ाव, अथवा उद्वेग-आवेग से गुजर रहा होता है, उसे प्रकट करता है ;
  3. मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा, मैं संघ के मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।'
  4. (मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा,) मैं-राज्य के मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।'
  5. बम्बई के स्नेही ही आवाज टेलीफोन पर कलकत्ता में सुनाई देती है तो फिर भक्ति भाव से, शुद्ध अंतःकरण से और अनन्य श्रद्धा से किया हुआ श्राद्ध मंत्रशक्ति के बल पर पितरों को तृप्ति देता है यह बात आधुनिक चार्वाकों के दिमाग में क्यों नही ं घुसती है, यह एक प्रश्न है।
  6. जो व्यक्ति शुद्ध अंतःकरण वाले हैं वे तो स्वतः उस ज्ञान को अपने आप ही यथा समय अपनी आत्मा में पा लेते हैं पर सामान्य पुरुष जो संशयों में भटकते रहते हैं, तरह-तरह के तर्कों द्वारा सत्य को पाने का प्रयास करते हैं, श्रद्धा उनके अन्दर से उपज ही नहीं पाती, वे तो मानो निरन्तर भटकते रहते हैं।
  7. अद्भुत कवच गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द के तपोबल से प्रदीप्त महामंत्र है| प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नानोपरांत शुद्ध वस्त्र धारण कर संक्षिप्त गुरु पूजन कर इसका पाठ करने से साधक को सुरक्षा, आनंद, सौभाग्य तथा गुरुदेव का तेज प्राप्त होता है| दृढ़ निश्चय से युक्त हो शुद्ध अंतःकरण से संपन्न किया गया इस कवच का विधिवत् अनुष्ठान जीवन की विकटतम परिस्थितियों में भी साधक को विजय प्रदान करने में सक्षम है|
  8. यह अद्भुत कवच गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द के तपोबल से प्रदीप्त महामंत्र है| प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नानोपरांत शुद्ध वस्त्र धारण कर संक्षिप्त गुरु पूजन कर इसका पाठ करने से साधक को सुरक्षा, आनंद, सौभाग्य तथा गुरुदेव का तेज प्राप्त होता है| दृढ़ निश्चय से युक्त हो शुद्ध अंतःकरण से संपन्न किया गया इस कवच का विधिवत् अनुष्ठान जीवन की विकटतम परिस्थितियों में भी साधक को विजय प्रदान करने में सक्षम है|
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