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ज्ञाति उदाहरण वाक्य

ज्ञाति अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. जब उन्हें रूस और चीन में साम्यवाद (कम्यूनिज्म) के नाम पर अत्याचार के बारे में ज्ञाति हुई, वह साम्यवाद के विरोधी हुए, और उन्होंने इसके विरुद्ध कई ग्रन्थ लिखे जिनका प्रभाव अमेरिकी बुद्धिजीवियों पर भी पडा।
  2. जो एक ही ज्ञाति के दो व्यक्तिओ में विवाह करने से प्राप्य होना ज्यादा संभवित हैं और ये ज्ञाति विवाह प्रथा हर ज्ञाति या वर्ण को अपनी गौरवशाली पहचान, अपनापन और आत्मसन्मान प्रदान करती हैं।
  3. जो एक ही ज्ञाति के दो व्यक्तिओ में विवाह करने से प्राप्य होना ज्यादा संभवित हैं और ये ज्ञाति विवाह प्रथा हर ज्ञाति या वर्ण को अपनी गौरवशाली पहचान, अपनापन और आत्मसन्मान प्रदान करती हैं।
  4. जो एक ही ज्ञाति के दो व्यक्तिओ में विवाह करने से प्राप्य होना ज्यादा संभवित हैं और ये ज्ञाति विवाह प्रथा हर ज्ञाति या वर्ण को अपनी गौरवशाली पहचान, अपनापन और आत्मसन्मान प्रदान करती हैं।
  5. इस भव् य सम् मेलन में प्रसिध् द ज्ञाति प्रेमी वयोव्रध् द श्री पं. मुकुन् दरामजी त्रिवेदी जी ने इन् दौर नगर में औदीच् य विध् यार्थी भवन स् थापित करने के लिए 21000 / रू ; दान किये ।
  6. विवाहोपरांत ज्ञाति में ही विवाहित स्त्री पुरुष पर ज्ञाति का और सगे संबंधीओं का हंमेशा प्रभाव और दबाव रहता है, और कोई संघर्ष या अनबनी के प्रसंग पर नासमझी की उल्झन सुलझाना सरल और सुगम होता हैं, क्युं की ज्ञाति में दोनो पक्ष कहीं न कहीं जुडे होते है।
  7. विवाहोपरांत ज्ञाति में ही विवाहित स्त्री पुरुष पर ज्ञाति का और सगे संबंधीओं का हंमेशा प्रभाव और दबाव रहता है, और कोई संघर्ष या अनबनी के प्रसंग पर नासमझी की उल्झन सुलझाना सरल और सुगम होता हैं, क्युं की ज्ञाति में दोनो पक्ष कहीं न कहीं जुडे होते है।
  8. विवाहोपरांत ज्ञाति में ही विवाहित स्त्री पुरुष पर ज्ञाति का और सगे संबंधीओं का हंमेशा प्रभाव और दबाव रहता है, और कोई संघर्ष या अनबनी के प्रसंग पर नासमझी की उल्झन सुलझाना सरल और सुगम होता हैं, क्युं की ज्ञाति में दोनो पक्ष कहीं न कहीं जुडे होते है।
  9. ज्ञाति प्रमोद निरतो मुखरो कुचैलो नीचः भवति सदा भीतियुतश्चिरायु ” अर्थात जिसकी कुंडली में केमद्रुम योग होता है वह पुत्र कलत्र से हीन इधर उधर भटकने वाला, दुःख से अति पीड़ित, बुद्धि एवं खुशी से हीन, मलिन वस्त्र धारण करने वाला, नीच एवं कम उम्र वाला होता है.
  10. भारतेन्दु हरिश्चंद्र के प्रहसनों-‘ सबै जाति गोपाल की ' और ‘ ज्ञाति विवेकिनी सभा '-से ज्ञात होता है कि पर्याप्त दक्षिणा लेकर “ निम्न ” जातियों को चार वर्णों की व्यवस्था में उच्च और “ उच्च ” जातियों को निम्न ठहराना देना ब्राह्मणों के लिए बांए हाथ का खेल है।
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