अग्निवर्धक का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इसका हरा फल स्वाद में कड़वा , अग्निवर्धक ,स्वाद को सुधारनेवाला तथा कफ और पित्त के दोषों को दूर करनेवाला बताया गया है।
- इसका हरा फल स्वाद में कड़वा , अग्निवर्धक ,स्वाद को सुधारनेवाला तथा कफ और पित्त के दोषों को दूर करनेवाला बताया गया है।
- इसका हरा फल स्वाद में कड़वा , अग्निवर्धक ,स्वाद को सुधारनेवाला तथा कफ और पित्त के दोषों को दूर करनेवाला बताया गया है।
- इसका हरा फल स्वाद में कड़वा , अग्निवर्धक ,स्वाद को सुधारनेवाला तथा कफ और पित्त के दोषों को दूर करनेवाला बताया गया है।
- आमवात , अनाह , कृमि ,कुष्ठ ,एवं गुल्मार्श , को नष्ट करता है | सातला अग्निवर्धक तथा वात जनक है | दस्त को लाने वाला और हृदय हितकारी है | उपर |
- भाव प्रकाश निघण्टु कार के अनुसार यह गुरु , शीत , तिक्त रसायन है जो मेधा को बढ़ाती है , अग्निवर्धक है , वात-पित्त शोथ निवारक तथा शुक्र दौर्बल्य को मिटाती है ।
- भाव प्रकाश निघण्टु कार के अनुसार यह गुरु , शीत , तिक्त रसायन है जो मेधा को बढ़ाती है , अग्निवर्धक है , वात-पित्त शोथ निवारक तथा शुक्र दौर्बल्य को मिटाती है ।
- दूध सुबह पीयें या षाम को इसके एक घण्टे पहले और एक घण्टे बाद तक कुछ न खायें तो अच्छा है दोपहर के पहले पिया हुआ दूध अत्यन्त बलवर्धक , पुष्टिकारक तथा अग्निवर्धक होता है।
- वायु के प्रकोपवश किसी भी स्थान पर उत्पन्न शूल अग्निवर्धक एवंवातानुलोमी हिंग्वादि गुटिका , स्वल्प अग्निमुख चूर्ण, योगराज गुग्गुल और विविधकाढ़ों के सेवन से तथा शूलहर योग, चतुर्मुख चूर्ण या चिन्तामणि रस आदि काअनुपान भेद से प्रयोग करना चाहिये.
- यह वात - रक्त , कुष्ट ,कृमि , वात , कफ , रूधिर त्वचा ,- दोष , ग्रहपीड़ा ,भूतबाधा , और दृष्ट्दोष को नष्ट करती है | तथा पित्त एवं अग्निवर्धक ,रूधिर कारक , हल्की ,कसैली , और तीव्र गंधयुक्त है |