अग्नि-शिखा का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- स्वार्थ-विहीन प्रेम आधार एक हृदय का , देखो , शिक्षा देता है पतंग कर प्यार अग्नि-शिखा को आलिंगन कर , रूप-मुग्ध वह कीट अधम अन्ध , और तुम मत्त प्रेम के , हृदय तुम्हारा उज्जवलतम।
- मुझे जान पड़ता है कि यही है पुरुष का आनंद- यही है जीवन का तांडव नृत्य ! पुराने के ध् वंस-यज्ञ की अग्नि-शिखा के ऊपर नए की सुंदर मूर्ति देखने के लिए ही पुरुष की साधना है।
- अति-आकर्षण अग्नि-शिखा की चुम्बकित किया उसे इस ओर , प्रेम की रोशन-रंगों में होता गया वो सराबोर; प्रेम की चंद झलक ही पाकर ठाना उसने संग चलने का, बारम्बार प्रयास मिलन के गम न तनिक उसे जलने का;
- उस चिता की अग्नि-शिखा आज भी स्वामी जी के अनुपम कार्यों में निहित , विश्व में भारतीय अंतश्चेतना , अंतर्भावनाशीलता और सदसद् विवेक का संदेश दे , भटके हुए को राह दिखा रही है ! ” सच को दर्शाती हुई रचना प्रेणात्मक है . सादर देवी
- तुम बिना पढ़े लौटा दी मेरी आत्मकथा ' आवरण' देख पुस्तक पढ़ने की आदी हो तुम फूलों का रंगों से मोल लगाती हो मैं भीनी-भीनी खुशबू का आभारी हूँ तुम सजी-सजाई दुकानों की ग्राहक हो मैं प्यार बेचता गली-गली व्यापारी हूँ तुम सुन न सकोगी मेरी अग्नि-शिखा गीतें तुम र...
- तुम बिना पढ़े लौटा दी मेरी आत्मकथा ' आवरण' देख पुस्तक पढ़ने की आदी हो तुम फूलों का रंगों से मोल लगाती हो मैं भीनी-भीनी खुशबू का आभारी हूँ तुम सजी-सजाई दुकानों की ग्राहक हो मैं प्यार बेचता गली-गली व्यापारी हूँ तुम सुन न सकोगी मेरी अग्नि-शिखा गीतें तुम र
- आठ जन स्पर्श कर रहे हैं ग्रहण के अंधकार में फुसफुसा कर कहते हैं कब कहाँ कैसा पहरा उनके कंठ में हैं असंख्य तारापुंज-छायापथ-समुद्र एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक आने जाने का उत्तराधिकार कविता की ज्वलंत मशाल कविता का मोलोतोव कॉक्टेल कविता की टॉलविन अग्नि-शिखा आहुति दें अग्नि की इस आकांक्षा में .
- अग्नि-शिखा की दीप्त किरण ने प्रेम की छोड़ी थी पिचकारी , अपने में था मगन पतंगा देख के मारा था किलकारी; देख अनल के उस रूप को इस कदर हुआ लालायित, समझ नही पाया था मैं क्यों प्रस्तुत हुआ नाश हित; झुलस गया अग्नि-लपटों में बचने का नही मौका था, बतलाया पर जलते-जलते प्रेम नही वह धोखा था.
- उस चिता की अग्नि-शिखा आज भी स्वामी जी के अनुपम कार्यों में निहित , विश्व में भारतीय अंतश्चेतना , अंतर्भावनाशीलता और सदसद् विवेक का संदेश दे , भटके हुए को राह दिखा रही है ! “ ईश्वर को केवल मंदिरों में ही देखने वाले व्यक्तियों की अपेक्षा ईश्वर उन लोगों से अधिक प्रसन्न होते हैं जो जाति , प्रजाति , रंग , धर्म , मत , देश-विदेश पर ध्यान ना देकर निर्धन , निर्बल और रोगियों की सहायता करने में तत्पर रहते हैं।