अद्रोह का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- मन्यु शब्द शायद नहीं आया है यहाँ , परन्तु युद्ध के लिए प्रेरित करते हुए भी अहिंसा , प्रेम , करुणा , समभाव , अद्रोह आदि पर जोर बार-बार दिया गया है।
- ' सावित्रीने कहा-- `देव! इस सारी प्रजाका आप नियमनकरते हैं, इसीसे आप यम कहे जाते हैं तथा मन वचन और कर्मसे समस्तप्रणियोंके प्रति अद्रोह, सबपर कृपा करना और दान देना-- यह सत्पूरुषोंकासनातन धर्म है.
- जिनके हृदय में सरलता , बुद्धिमानी, अहंकार शून्यता, परम सौहार्दता, पवित्रता और करूणा है, जिनमें क्षमा का गुण विकसित है, सत्य, दान जिनका स्वभाव बन जाता है, कोमल वचन और मित्रों से अद्रोह (धोखा न करने) का जिनका वचन है, उनके यहाँ तो मैं बिना बुलाये रहती हूँ।
- महाभारत ने अपने अनेक पवाç तथा अध्यायों में जिन साधारण धर्मों का वर्णन किया है , उनके दया , क्षमा , शांति , अहिंसा , सत्य , सारल्य , अद्रोह , अक्रोध , निभिमानता , तितिक्षा , इन्द्रिय-निग्रह , यम , शुद्ध बुद्धि , शील , आदि मुख्य हैं।
- महाभारत ने अपने अनेक पवाç तथा अध्यायों में जिन साधारण धर्मों का वर्णन किया है , उनके दया , क्षमा , शांति , अहिंसा , सत्य , सारल्य , अद्रोह , अक्रोध , निभिमानता , तितिक्षा , इन्द्रिय-निग्रह , यम , शुद्ध बुद्धि , शील , आदि मुख्य हैं।
- परन्तु उससे भी आगे बढ़कर बड़े समुदायों का विचार करें और सबसे बड़े संघटन राष्टृ इस समष्टि का भी विचार करें तो ऐसा दिखाई देगा कि उसमें भी स्वकीयों के साथ व्यवहार में सत्य एकनिष्ठा अविसंवादित्व अद्रोह और त्याग इन धर्म तत्वों की उत्कर्ष हेतु उतनी ही आवष्यकता है।
- अहिंसा सत्यमक्रोधस्लाग शांतिपेंशुनम् दया भूतेष्वयलोलुप्ल मार्दवं ह्रीरचापलम् तेज : क्षमा धृति : शौचमद्रोहो नातिमानिता भवन्ति संपदं : दैवीमभिजातस्य भारत हे भारत ! - अर्जुन को कृष्ण ने कहा - हे भारत , अभय , चित्तशुद्धि , योगानुराग , दान , संयम , यश , स्वाध्याय , तप , सरलता , अहिंसा , सत्य , अक्रोध , त्याग , शांति , अलोभ , अहंकारशून्यता , ही अर्थात असत कार्यो में सहज संकोच , अचंचलता , तेज , क्षमा , धृति अर्थात सुख - दुख में अविचलभाव , अद्रोह ये सब दिव्यपुरुष के लक्षण है।
- अहिंसा सत्यमक्रोधस्लाग शांतिपेंशुनम् दया भूतेष्वयलोलुप्ल मार्दवं ह्रीरचापलम् तेज : क्षमा धृति : शौचमद्रोहो नातिमानिता भवन्ति संपदं : दैवीमभिजातस्य भारत हे भारत ! - अर्जुन को कृष्ण ने कहा - हे भारत , अभय , चित्तशुद्धि , योगानुराग , दान , संयम , यश , स्वाध्याय , तप , सरलता , अहिंसा , सत्य , अक्रोध , त्याग , शांति , अलोभ , अहंकारशून्यता , ही अर्थात असत कार्यो में सहज संकोच , अचंचलता , तेज , क्षमा , धृति अर्थात सुख - दुख में अविचलभाव , अद्रोह ये सब दिव्यपुरुष के लक्षण है।