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अध्यात्म-ज्ञान का अर्थ

अध्यात्म-ज्ञान अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. ग्रंथों में उल्लेख है कि उन्होंने अध्यात्म-ज्ञान के साथ-साथ आतताइयों और दुष्टों के दमन के लिये सभी अस्त्र-शस्त्रों की भी सृष्टि की थी।
  2. इस प्रकार ये गुरु के रूप में अपने भक्तों को अध्यात्म-ज्ञान का उपदेश देकर सांसारिक दुख से मुक्त करके उनकी अविद्या की निवृत्ति करते हैं।
  3. अध्यात्म-ज्ञान के क्षेत्र में भारत का पूरे विश्व में एक अलग ही स्थान है , फिर बात चाहे भगवान राम, कृष्ण महावीर ही क्यो न हो, पूरे विश्व में हर एक शांति की खोज में लगा हुआ ...
  4. ये ही आसुमल ब्रह्मनिष्ठा को प्राप्त कर आज बड़े-बड़े दार्शनिकों , वैज्ञानिकों,नेताओं तथा अफसरों से लेकर अनेक शिक्षित-अशिक्षित साधक-साधिकाओं तक सभीको अध्यात्म-ज्ञान की शिक्षा दे रहे हैं, भटके हुए मानव-समुदाय को सही दिशा प्रदान कर रहे हैं ।...
  5. शास्त्रों के ज्ञान को संकलित करके पूरे विश्व को अध्यात्म-ज्ञान से आलोकित करनेवाले भगवान वेदव्यासजी की जन्मस्थली भी भारत ही है और विश्वभर में अहिंसा , सत्य , अस्तेय आदि को फैलानेवाले भगवान बुद्ध भी इसी धरती पर अवतरित हुए हैं।
  6. पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति का डंका बजाने वाले और अध्यात्म-ज्ञान , आत्मज्ञान का खजाना बाँटने वाले , स्वस्थ , सुखी , सम्मानित जीवनि की राह दिखाने वाले लोकलाडले संत श्री आसारामजी महाराज को सनसनी खबर बनाकर बदनाम करने का सोचा समझा षडयंत्र है।
  7. मैं मीडिया समुदाय से आग्रह करना चाहूँगा कि भारतीय संस्कृति का रक्षक बने , न कि भक्षक ! भारत के अध्यात्म-ज्ञान की आज भारत को ही नहीं पूरे विश्व को जरूरत है , इसलिए बापू जी जैसे महान संतों के वचनों को जन-जन तक पहुँचाकर अपना व विश्व का कल्याण करें।
  8. में संस्थापित हरिद्वार के कृपालुबाग आश्रम में स्थित “ दिव्य योग मन्दिर ” के मुख्य भूमण्डलीय जनता के आरोग्य-लाभ , अध्यात्म-ज्ञान एवं योग-प्रशिक्षण आदि सेवा कार्यों को सम्पन्न करते हुए मैं इस तुच्छ योगकृति को उन्हीं ब्रह्मलीन महर्षि पूज्यवाद राष्ट्रसन्त श्रद्धेय स्वामी श्रीकृपालुदेवजी महाराज की पावन दिव्य स्मृति में श्रद्धा-भक्ति-सहित समर्पित करता हूँ।
  9. में संस्थापित हरिद्वार के कृपालुबाग आश्रम में स्थित “ दिव्य योग मन्दिर ” के मुख्य भूमण्डलीय जनता के आरोग्य-लाभ , अध्यात्म-ज्ञान एवं योग-प्रशिक्षण आदि सेवा कार्यों को सम्पन्न करते हुए मैं इस तुच्छ योगकृति को उन्हीं ब्रह्मलीन महर्षि पूज्यवाद राष्ट्रसन्त श्रद्धेय स्वामी श्रीकृपालुदेवजी महाराज की पावन दिव्य स्मृति में श्रद्धा-भक्ति-सहित समर्पित करता हूँ।
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