अनीह का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- निर्गुण निराकार रूप का वर्णन करते हुए तुलसी लिखते हैं एक अनीह अरूप अनामा , अज सचिदानंद पर धामा यानि परमात्मा एक है, उसकी अपनी कोई इच्छा नहीं है , उसका कोई रूप नहीं है, उसका कोई नाम नहीं है उसका कोई जन्म नहीं है, वह सत्-चित-आनन्द है और वह ही परमधाम है.
- मैं जिन्दा रखूंगी वह ताजी पुलक समाज जब नोच लेगा सारे कीर्ति-रोम जब शीशे के अन्दर बर्फ के फाहों में हजारों साल बाद गल जाएगी तुम्हारी देह मिट्टी में दफ़न हो जायेंगे तुम्हारे लाव-लश्कर समय के साथ जब झड़ जायेंगे तुम्हारी कविताओं के अर्थ तब भी मैं भटकती रहूंगी अनीह , निस्पृह, अनिरुद्ध बचा कर रखूंगी उनकी मर्यादा
- 267 . ऐ ईमान लाने वालो ! अपनी पाक कमाई में से और हमने जो तुम्हारे लिए ज़मीन से पैदा किया है उसमें से अल्लाह के नाम पर ख़र्च करो , और अल्लाह के नाम पर नजिस ( व निम्न ) चीज़ों को ख़र्च न करो , क्योंकि तुम स्वयं आँखे बंद किये बिना ( मजबूरी की स्थिति के अतिरिक्त ) उन्हें स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हो , और जान लो कि निःसंदेह अल्लाह अनीह व प्रशंसनीय है।