अपरत्व का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- परत्व और अपरत्व का स्वरूप ' यह पर है , यह अपर है ' - इस प्रकार के व्यवहार का असाधारण कारण परत्व एवं अपरत्व है।
- परत्व और अपरत्व का स्वरूप ' यह पर है , यह अपर है ' - इस प्रकार के व्यवहार का असाधारण कारण परत्व एवं अपरत्व है।
- ये हैं रूप , रस, गंध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह, ज्ञान, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दुख, संस्कार, ध्वनि, प्राकट्य और शक्ति।
- कालद्रव्य- यह * द्रव्यों की वर्तना , परिणमन , क्रिया , परत्व ( ज्येष्ठत्व ) और अपरत्व ( कनिष्ठत्व ) के व्यवहार में सहायक ( उदासीन-अप्रेरक निमित्त ) होता है।
- नव्यन्याय में परत्व , अपरत्व को विप्रकृष्टत्व और सन्निकृष्टत्व या ज्येष्ठत्व और कनिष्ठत्व में अन्तर्निहित मान लिया गया है और पृथक्त्व को अन्योन्याभाव का ही एक रूप बताया गया है।
- नव्यन्याय में परत्व , अपरत्व को विप्रकृष्टत्व और सन्निकृष्टत्व या ज्येष्ठत्व और कनिष्ठत्व में अन्तर्निहित मान लिया गया है और पृथक्त्व को अन्योन्याभाव का ही एक रूप बताया गया है।
- रूप , रस, गंध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह (चिकनापन), शब्द, ज्ञान, सुख, दु:ख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म अधर्म तथा संस्कार ये चौबीस गुण के भेद हैं।
- पूर्ववर्चिंताकुछ लोगों का कहना है कि पूर्व और अपरत्व के मास्नने से अनवस्था दोष आजाता है; क्योंकि न तो पूर्व ही की और सीमा बाँधी जा सकती है और न अपरताकी ओर ही .
- प्रशस्तपाद ने मन को संख्या , परिमाण , पृथक्त्व , संयोग , विभाग , परत्व , अपरत्व और संस्कार नामक आठ गुणों का अचेतन , परार्थक , मूर्त , अणुपरिमाण तथा आशु संचारी माना है।
- प्रशस्तपाद ने मन को संख्या , परिमाण , पृथक्त्व , संयोग , विभाग , परत्व , अपरत्व और संस्कार नामक आठ गुणों का अचेतन , परार्थक , मूर्त , अणुपरिमाण तथा आशु संचारी माना है।