अप्रमा का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- प्रमा से विपरीत अनुभव को ' अप्रमा' कहते हैं अर्थात् किसी वस्तु मे किसी गुण का अनुभव जिसमें वह गुण विद्यमान ही नही रहता।
- प्रमा से विपरीत अनुभव को ' अप्रमा' कहते हैं अर्थात् किसी वस्तु मे किसी गुण का अनुभव जिसमें वह गुण विद्यमान ही नही रहता।
- वे सब मिलकर किसी भी तरह जन-जीवन की नजर में उन्हें अप्रमा णिक एवं अयोग्य सा बित करना चाहते थे।
- ज्ञान ( प्रमा ) क्या है ? ज्ञान और अज्ञान ( अप्रमा ) में क्या भेद है ? ज्ञान के साधन अथवा निश्चायक घटक कौन हैं ?
- अपेक्षा का लक्ष्य अपेक्षी काआत्मबाध नहीं होकर उसकी पूर्ति ही होना चाहिए; अपेक्षी द्वारा विषय मेंप्रमा का अन्वेषण और अप्रमा के निवारण की आकुलता विषय के इसी स्वरूप कीओर संकेत करती है .
- कुछ सात्विक गुणों का विकास करना भी आत्मा के लिए जरूरी है . ज्ञातृत्वज्ञान, प्रमा और अप्रमा दोनों का समावेश करते हुए, चित्त की विषयवृत्तिया अपेक्षा-~ वृत्ति है और ज्ञातृत्व इस वृत्ति का प्रत्यड् मुखप्रेक्षकत्व.
- उदाहरणतः तत्त्व , जोकि विचार-विषयः प्रत्ययः होते हैं, स्वतंत्र होकर भीइतरता में मुखर नहीं होते हैंः हम प्रत्यय का विचार में प्रत्यक्ष करतेहैं, उसका हमारा ग्रहण प्रमा या अप्रमा भी होता है और परिणामतः वहःप्रत्यय या तत्त्वः विचार से स्वतंत्र प्रकट होता है, किन्तु तब भीप्रत्यय इतर के रूप में प्रकट नहीं होकर विचार के आन्तर सत्त्व के रूपमें ही प्रकट होता है.