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अभोगी का अर्थ

अभोगी अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. वह कर्नाटकी संगीत का राग अभोगी कानड़ा था , जिसे किराना घराने के उस्ताद अब्दुल करीम खां ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में प्रचलित कर दिया था।
  2. यह बात दर्ज की जानी चाहिए कि अमीर खान ने मेघ , मारवा , अभोगी और नन्द रागों के लिए विस्तृत विलम्बितों की रचना की जिनमें पहले छोटे ख़याल ही गाए जाते थे .
  3. यह बात दर्ज की जानी चाहिए कि अमीर खान ने मेघ , मारवा , अभोगी और नन्द रागों के लिए विस्तृत विलम्बितों की रचना की जिनमें पहले छोटे ख़याल ही गाए जाते थे .
  4. ( 3) जो भारत के बाहर स्थित चल अवस्थापित सम्पत्ति का मृत्यु पर्यंत अभोगी रहा हो किंतु शर्त यह कि अवस्थापक अवस्थापन के समय भारत का अधिवासी रहा हो तो उसकी वह संपत्ति करार्ह होगी।
  5. कर्नाटकी संगीत वाला वही अभोगी कानड़ा , जिसे उस् ताद की आवाज़ में सुनकर पं . निखिल बनर्जी ठिठक गए थे और फिर छोड़ी हुई सभा में लौट आए थे , जैसे सितार की गत झाला से आलाप पर लौट रही हो .
  6. ====================================== वर्तमान युग - अराजकता-अरक्षा का , सतत विद्वेष-स्वर-अभिव्यक्ति का, कटु यातनाओं से भरा, अमंगल भावनाओं से डरा ! धूमिल गरजते चक्रवातों ग्रस्त ! प्रतिक्षण अभावों-संकटों से त्रास्त ! युग - निर्दय विघातों का, असह विष दुष्ट बातों का ! अभोगी वेदना का, लुप्त मानव-चेतना का ! घोर अनदेखे अँधेरे का ! अ-जनबी / शोर, रक्तिम क्रूर जन-घातक सबेरे का ! ========================================= परिणति आजन्म अपमानित-तिरस्कृत ज़िन्दगी पथ से बहकती यदि - सहज; आश्चर्य क्या है ?
  7. ====================================== वर्तमान युग - अराजकता-अरक्षा का , सतत विद्वेष-स्वर-अभिव्यक्ति का, कटु यातनाओं से भरा, अमंगल भावनाओं से डरा ! धूमिल गरजते चक्रवातों ग्रस्त ! प्रतिक्षण अभावों-संकटों से त्रास्त ! युग - निर्दय विघातों का, असह विष दुष्ट बातों का ! अभोगी वेदना का, लुप्त मानव-चेतना का ! घोर अनदेखे अँधेरे का ! अ-जनबी / शोर, रक्तिम क्रूर जन-घातक सबेरे का ! ========================================= परिणति आजन्म अपमानित-तिरस्कृत ज़िन्दगी पथ से बहकती यदि - सहज; आश्चर्य क्या है ?
  8. यदि हम उनके द्वारा गाये गये परम्परागत राग , मसलन ‘ तोड़ी ‘ , ‘ भैरव ‘ , ‘ ललित ‘ , ‘ मारवा ‘ , ‘ पूरिया ‘ , ‘ मालकौंस ‘ , ‘ केदारा ‘ , ‘ दरबारी ‘ , ‘ मुल्तानी ‘ , ‘ पूरवी ‘ , ‘ अभोगी ‘ , ‘ चन्द्रकौंस ‘ आदि देखें तो यह बहुत स्पष्ट हो जायेगा कि इसमें वे अपनी ‘ गांभीर्यमयी स्वर-सम्पदा से ‘ मन्द्र ' का जिस तरह दोहन करते हैं , वह एकदम विशिष्ट है .
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