अराज का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- जनक छन्द के आचार्य व प्रणेता डॉ . ओम्प्रकाश भाटिया ‘ अराज ' जी जनक छन्द के रचनाकारों के ही हस्तलेख में जनक छन्द का वृहद ग्रन्थ तैयार कर रहे हैं।
- डॉ . ब्रह्मजीत गौतम जी ने वर्ष 2006 में अराज जी के तमाम कार्य को ध्यान में रखकर जनक छन्द का शोधपरक विवेचन किया , जो पुस्तक रूप में पाठकों के समक्ष आया है।
- इस चर्चा में डॉ . गौतम जी ने उक्त प्रयोगों से सम्बन्धित अराज जी के नियमों और व्यवस्थाओं में कुछ खामियों को भी दर्शाया है और उनके समाधान भी स्वरचित रचनाओं के उदाहरण देकर प्रस्तुत किए हैं।
- इस विवेचन में उन्होंने जनक छन्द के उद्भव और विकास पर अराज जी के कार्य और प्रतिपादनाओं के सन्दर्भ में प्रकाश तो डाला ही है , जनक छन्द के नियमों और उसमें हुए कई प्रयोगों की समालोचनात्मक समीक्षा भी की है।
- पड़ताल शीर्षक से डा . अराज का जनक छन्द : स्वरूप और महत्व , डॉ . हरदीप संधु का हाइकु : कुछ विचार तथा बलराम अग्रवाल का क्षणिका का रचना विधान सम्बन्धी आलेख , सम्बन्धित विधाओं से गहन परिचय एवं उनकी प्रशस्ति का परिचायक है।
- पड़ताल शीर्षक से डा . अराज का जनक छन्द : स्वरूप और महत्व , डॉ . हरदीप संधु का हाइकु : कुछ विचार तथा बलराम अग्रवाल का क्षणिका का रचना विधान सम्बन्धी आलेख , सम्बन्धित विधाओं से गहन परिचय एवं उनकी प्रशस्ति का परिचायक है।
- जनक छन्द की सही विवेचना जनक छन्द अरा और जनक नागरी लिपियों के प्रणेता और आचार्य डॉ . ओम्प्रकाश भाटिया ‘ अराज ' द्वारा प्रणीत है और इसकी रचना एवं शिल्प आदि के बारे में नियम भी अराज जी द्वारा ही निर्धारित किये गए हैं।
- जनक छन्द की सही विवेचना जनक छन्द अरा और जनक नागरी लिपियों के प्रणेता और आचार्य डॉ . ओम्प्रकाश भाटिया ‘ अराज ' द्वारा प्रणीत है और इसकी रचना एवं शिल्प आदि के बारे में नियम भी अराज जी द्वारा ही निर्धारित किये गए हैं।
- सम्पादित ग्रंथ- अराज की प्रतिनिधि कविताएँ , छवि के प्रतिबिम्ब, पीलीभीत के गौरव डॉ० रामकुमार वर्मा स्मृति ग्रंथ, डॉ० महेश दिवाकर सृजन के बीच, पं० गिरिमोहन गुरु : संवेदना व शिल्प, कालिदास और शेक्सपियर के काव्य में प्रेम और सौन्दर्य तत्त्व, शब्द शब्द समिधा मानव मूल्यपरक शब्दावली विश्वकोश।
- डा . ओम्प्रकाश भाटिया ‘ अराज ' ने जनक छन्द के माध्यम से अनेक युवा कवियों को छंद लिखने का शऊर सिखाया है , लेकिन इसका दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह है कि उनमें से ही कुछ स्वयं को जनक छंद के जनक व आचार्य कहने से बाज नहीं आते।