अवधिज्ञान का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- मतिज्ञान , श्रुतज्ञान , अवधिज्ञान , मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान को आवरित करने वाले अलग-अलग पांच आवरणीय कर्म हैं ।
- मतिज्ञान , श्रुतज्ञान , अवधिज्ञान , मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान को आवरित करने वाले अलग-अलग पांच आवरणीय कर्म हैं ।
- इन्द्रिय और मन निरपेक्ष एवं आत्मसापेक्ष जो मूर्तिक ( पुद्गल ) का सीमायुक्त ज्ञान होता है वह अवधिज्ञान है।
- गणगार को उनके गुणों के अनुसार प्राप्त होनेवाले अवधिज्ञान के ये छह भेद हैं-आनुगामिक , अनानुगामिक, वर्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित।
- इस अवधिज्ञान के द्वारा जाने गए पदार्थ के अनंतवें भाग को जो ज्ञान जानता है वह मन : पर्ययज्ञान है।
- मिथ्याश्रुतज्ञान 6 . मिथ्या अवधिज्ञान ( विभंगावधि ) , 7 . मन : पर्ययज्ञान और 8 केवलज्ञान ये आठ ज्ञानोपयोग हैं।
- ३ अवधिज्ञान - द्रव्य क्षेत्र कल भाव की मर्यादा लिए हुए रूपी द्रव्य के स्पष्ट प्रत्यक्ष ज्ञान को अवधि ज्ञान कहते है
- इसकी ज्ञानों के भेदानुसार पांच उत्तर प्रकृतियां हैं , जिससे क्रमशः जीव का मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यय ज्ञान व केवलज्ञान आवृत होता है।
- ( वीर सवंत की गणनानुसार चैत्र कृष्णपक्ष दसम की मध्यरात्रि के समय) बाल जिनेश्वर - जो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान के साथ ही जन्मे थे।
- उन्होंने अपने अवधिज्ञान से यह जान लिया की राज्य के मंत्री जैन धर्म के विरोधी हैं तथा संघ के लिए समस्या कड़ी कर सकते हैं .