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अविज्ञेय का अर्थ

अविज्ञेय अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. गीता श्लोक 13 . 15 परमात्मा की परिभाषा कुछ इस प्रकार से देता है - अति सूक्ष्म , अविज्ञेय परमात्मा सभी चर-अचर के अन्दर , बाहर , दूर , समीप में है और चर- अचर भी वही है ।
  2. गीता श्लोक 13 . 15 परमात्मा की परिभाषा कुछ इस प्रकार से देता है - अति सूक्ष्म , अविज्ञेय परमात्मा सभी चर-अचर के अन्दर , बाहर , दूर , समीप में है और चर- अचर भी वही है ।
  3. परमात्मा भावातीत एवं अविज्ञेय - अब्यक्तनीय है और अब इस बात के आधार पर विज्ञान की खोजों को देखिये की 19 वी एवं 20 वी शताब्दी के मध्य तक एवं आज तक वैज्ञानिक प्रकाश में क्या खोज रहे हैं ?
  4. भाग - 0 3 प्रभु कहते हैं - हे अर्जुन ! तुम सबके ह्रदय में आत्मा रूप में , मैं हूँ और साथ में यह भी कहते हैं - आत्मा सर्वत्र है ....... आत्मा अविज्ञेय है .... आत्मा अज्ञेय है ......
  5. गीता का परमात्मा हीरे के मुकुट से खुश नहीं होता , और न हमारी दरिद्रता पर रोता है , गीता का परमात्मा एक माध्यम है जो गुनातीत , भावातीत , सीमा रहित , स्थिर , सर्वत्र , सनातन , अज्ञेय , अविज्ञेय तथा अति सूक्ष्म है ।
  6. गीता का परमात्मा हीरे के मुकुट से खुश नहीं होता , और न हमारी दरिद्रता पर रोता है , गीता का परमात्मा एक माध्यम है जो गुनातीत , भावातीत , सीमा रहित , स्थिर , सर्वत्र , सनातन , अज्ञेय , अविज्ञेय तथा अति सूक्ष्म है ।
  7. बुद्धि को एक पर स्थिर करो वह एक कौन है ? वह जो ..... अब्यक्त है अविज्ञेय है क्षेत्रज्ञ रूप में हम सब में है पुरुष रूप में ब्रह्माण्ड का नाभि केंद्र है और जिस से .... जिसमें ..... वह सब है , जो आज है वह सब होगा जो कल होगा और जिस से एवं जिसमें टाइम - स्पेस फ्रेम है ॥ ==== ॐ ======
  8. परा भक्ति का फल है - ज्ञान जो देह जो विकारों से भरी है उसे निर्विकार करता है और . ....... मन - बुद्धि तंत्र में बहनें वाली ऊर्जा का रुख बदल कर कहता है - देख ! यह तूं है , यह तेरा जीवन है और ऐसा करते रहो तो एक दिन तू उसमें होगा जो - शाश्वत , निराकार , आदि - अंत रहित , अब्यक्त , अविज्ञेय है और वहीं ....... परम धाम है ।
  9. परा भक्ति का फल है - ज्ञान जो देह जो विकारों से भरी है उसे निर्विकार करता है और . ....... मन - बुद्धि तंत्र में बहनें वाली ऊर्जा का रुख बदल कर कहता है - देख ! यह तूं है , यह तेरा जीवन है और ऐसा करते रहो तो एक दिन तू उसमें होगा जो - शाश्वत , निराकार , आदि - अंत रहित , अब्यक्त , अविज्ञेय है और वहीं ....... परम धाम है ।
  10. गीता कहता है -प्रभु अविज्ञेय है [ गीता - 13.15 ] , परम अक्षर है [ गीता - 8.3 ] , अब्यक्त है [ गीता - 2.28 ] , सत - असत है [ गीता - 9.19 ] , न सत है न असत है [ गीता - 13.12 ] , एवं सत - असत से परे है [ गीता -11.37 ] , और गीता यह भी कहता है -ब्रह्म की अनुभूति मन - बुद्धि से परे की है - गीता - 12 ।
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