अश्वल का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- महापंडित अश्वल ने अगला प्रश्न किया-आज जो यज्ञ होने वाला है , इसमें कितनी आहुतियों से अध्वर्य यज्ञ करेगा ? याज्ञवल्क्य ने कहा तीन से , वे तीन
- ऋषि का कथन सुन अश्वल उनसे अन्य प्रश्न पूछते हैं वह कहते हैं हे ऋषिवर संसार रात व दिन के अधीन है अत : इस पर कैसे विजय प्राप्त कि जा ए.
- अश्वल फिर से उनसे एक अन्य प्रश्न पूछते हैं कि हे ऋषिवर जब सभी कुछ कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष के अधीन है तो किस प्रकार इनसे मुक्त हुआ जा सकता है .
- बृहदारण्यकोपनिषद के प्रथम ब्राह्मण में सबसे पहले यज्ञ के होता अश्वल उनसे प्रश्न करते हैं वह कहते हैं हे मुनिवर जब सभी कुछ मृत्यु के अधीन है तो कैसे केवल यजमान ही मृत्यु के बन्धन का अतिक्रमण कर सकता है ?
- अश्वल प्रश्न करते हैं हे मुनीवर ब्रह्माण आधारहीन प्रतीत होता है फिर साधक कैसे स्वर्गरोहण पाता है , याज्ञवल्क्य कहते है कि ब्रह्मा एवं चन्द्रमा द्वारा स्वर्गारोहण करता है मन ही चन्द्रमा है व मन ही यज्ञ का ब्रह्मा है मन को स्थिर करके ही सभी कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है .
- सबसे पहले यज्ञ के होता अश्वल ने प्रश्न किया और याज्ञवल्क्य ने उसके प्रश्नों का उत्तर दिया- अश्वल- ' हे मुनिवर ! जब यह सारा विश्व मृत्यु के अधीन है , तब केवल यजमान ही किस प्रकार मृत्यु के बन्धन का अतिक्रमण कर सकता है ? ' याज्ञवल्क्य - होता नामक ऋत्विक वाक् ( वाणी ) और अग्नि है।
- ( 9 ) प्रथम पंक्ति की व्याख्या : -महाराज जनक की सभा में ब्रह्मसूत्रों पर चर्चा चल रही थी , महापंडित अश्वल ने याज्ञवल्क्य से पूछा-हे , याज्ञवल्क्य आज जो यज्ञ होने वाला है , इससे कितनी ऋचाओं से होता यज्ञ करेगा ? याज्ञवल्क्य ने कहा-तीन से वे तीन ऋचाएं कौन सी हैं ? याज्ञवल्क्य ने कहा-वे हैं-पुरानेनुवाक्या , याज्या ती शस्या।