आचार्य अभिनवगुप्त का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- आचार्य अभिनवगुप्त के अनुसार दर्शक या पाठक के अन्तःकरण में स्थित स्थायिभाव ही रसानुभूति का साधन है।
- आचार्य भट्टलोल्लट , आचार्य भट्टनायक एवं आचार्य अभिनवगुप्त ने रस निष्पत्ति की प्रक्रिया को विस्तार से समझाया है।
- आचार्य अभिनवगुप्त के एक और शिष्य क्षेमराज का नाम आता है जिन्होंने शैवदर्शन पर कई रचनाएं लिखी हैं।
- आचार्य मम्मट ने आचार्य अभिनवगुप्त के उक्त मत के नाट्यसूत्र की टीका अभिनवभारती से यथावत उद्धृत किया है।
- आचार्य अभिनवगुप्त के अनुसार चित्त में एक ज्ञान का परिस्पन्द जितनी देर तक रहता है वह एक क्षण होता है।
- आचार्य अभिनवगुप्त ने निष्पत्ति का अर्थ अभिव्यक्तिवाद से लेकर संयोग का अर्थ व्यंग्य-व्यंजक भाव संबंध के रूप में लिया है।
- आचार्य अभिनवगुप्त ने “अभिनवभारती” में लोल्लट का उल्लेख भरतमुनि के नाट्यसूत्र के मान्य टीकाकार आचार्य के रूप में किया है।
- जबकि इनके मतों का खण्डन आचार्य अभिनवगुप्त ने ‘ध्वन्यालोक ' पर ‘लोचन' नामक टीका करते समय भी उतने ही सशक्त ढंग से किया है।
- 285 आचार्य अभिनवगुप्त के अभिव्यक्तिवाद के निष्पति का अर्थ है - विभव , अनुभाव आदि से व्यक्त स्थायी भाव रस की अभिव्यक्ति करता है।
- तथा शंकुक और समसामयिक आचार्य अभिनवगुप्त तीनों के मतों का ‘न प्रतीति होती है , न उत्पत्ति होती है और न ही अभिव्यक्ति होती है'