×

आद्यान्त का अर्थ

आद्यान्त अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. जीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तक जीत ना पाओ मुझे तुम कभी भी अरे मैं तो ‘तत्व ' हूँ क्या ‘व्यवस्था' से मुझे लेना है ‘पंच तत्वों' की निरी भंगुर महा इस सृष्टि से, आद्यान्त अभिनव ब्रह्म से मैं परे हूँ …..
  2. जीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तक जीत ना पाओ मुझे तुम कभी भी अरे मैं तो ‘तत्व ' हूँ क्या ‘व्यवस्था' से मुझे लेना है ‘पंच तत्वों' की निरी भंगुर महा इस सृष्टि से, आद्यान्त अभिनव ब्रह्म से मैं परे हूँ …..
  3. जीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तक जीत ना पाओ मुझे तुम कभी भी अरे मैं तो ' तत्व' हूँ क्या 'व्यवस्था' से मुझे लेना है 'पंच तत्वों' की निरी भंगुर महा इस सृष्टि से, आद्यान्त अभिनव ब्रह्म से मैं परे हूँ …..
  4. जीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तक जीत ना पाओ मुझे तुम कभी भी अरे मैं तो ' तत्व' हूँ क्या 'व्यवस्था' से मुझे लेना है 'पंच तत्वों' की निरी भंगुर महा इस सृष्टि से, आद्यान्त अभिनव ब्रह्म से मैं परे हूँ …..
  5. बंधे हो तुम इन्द्रियों की पाश में , यों ही पा सकोगे न कभी जीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तक जीत ना पाओ मुझे तुम कभी भी अरे मैं तो स्वयं तुझ में गूंज कर भी नहीं तुझ में लिप्त हूँ, और तू तो स्वयं मुझसे दूर होकर, मगन है निस्सार में 'बाह्य' को कर बन्द, 'अंतर' खोल..
  6. जीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तकजीत ना पाओ मुझे तुम कभी भीअरे मैं तो ‘तत्व ' हूँक्या ‘व्यवस्था' से मुझे लेना है‘पंच तत्वों' की निरी भंगुरमहा इस सृष्टि से,आद्यान्त अभिनव ब्रह्म सेमैं परे हूँ …..बंधे हो तुम इन्द्रियों की पाश में,यों ही पा सकोगे न कभीजीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तकजीत ना पाओ मुझे तुम कभी भीअरे मैं तो स्वयंतुझ में गूंज कर भीनहीं तुझ में लिप्त हूँ,और तू तो स्वयंमुझसे दूर होकर,मगन है निस्सार में‘बाह्य' को कर बन्द,‘अंतर' खोल..
  7. जीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तकजीत ना पाओ मुझे तुम कभी भीअरे मैं तो ‘तत्व ' हूँक्या ‘व्यवस्था' से मुझे लेना है‘पंच तत्वों' की निरी भंगुरमहा इस सृष्टि से,आद्यान्त अभिनव ब्रह्म सेमैं परे हूँ …..बंधे हो तुम इन्द्रियों की पाश में,यों ही पा सकोगे न कभीजीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तकजीत ना पाओ मुझे तुम कभी भीअरे मैं तो स्वयंतुझ में गूंज कर भीनहीं तुझ में लिप्त हूँ,और तू तो स्वयंमुझसे दूर होकर,मगन है निस्सार में‘बाह्य' को कर बन्द,‘अंतर' खोल..
  8. धूप आने दो कब से आ मन में समाये और नहीं अब बोलूँगा सुख दुख प्राणप्रिय ' काव्य' तेरा स्वागत जीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तक आज भी याद है मुझे ओ पिता ! अपरिचिता द्वितीय सर्ग तम की कोख सवेरा कृति पीड़ा जीवन बाँसुरी स्वागत हे नव वर्ष ! लहरों के आने तक कौन हूँ मैं... मैं क्या जानूँ... पुरू क्रमशः आया बसंत तुम्हारा रिश्ता स्वयं बोध समय निर्बंध हुआ है हर यौवन हॄदय पर हस्ताक्षर तुम्हारी पदचाप महंगाई के डण्डे घिन आने लगी है 'घोड़ामण्डी' से
  9. योगदान - धूप आने दो कब से आ मन में समाये और नहीं अब बोलूँगा सुख दुख प्राणप्रिय ' काव्य' तेरा स्वागत जीत लो चाहे अवनि आद्यान्त तक आज भी याद है मुझे ओ पिता ! अपरिचिता द्वितीय सर्ग तम की कोख सवेरा कृति पीड़ा जीवन बाँसुरी स्वागत हे नव वर्ष ! लहरों के आने तक कौन हूँ मैं... मैं क्या जानूँ... पुरू क्रमशः आया बसंत तुम्हारा रिश्ता स्वयं बोध समय निर्बंध हुआ है हर यौवन हॄदय पर हस्ताक्षर तुम्हारी पदचाप महंगाई के डण्डे घिन आने लगी है 'घोड़ामण्डी' से
अधिक:   पिछला  आगे


PC संस्करण
English


Copyright © 2023 WordTech Co.