ईशावास्य उपनिषद का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- हमारा सांस्कृतिक आदर्श हमेशा त्यागमय भोग रहा है ¸ - ईशावास्य उपनिषद का ‘ तेन त्यक्तेन भुंजीथा : ' रहा है।
- ' कर्म करते हुए ही सौ वर्षों तक जीवित रहने की इच्छा रखे ' ईशावास्य उपनिषद का यह मंत्र हम सब जानते हैं।
- ' कर्म करते हुए ही सौ वर्षों तक जीवित रहने की इच्छा रखे ' ईशावास्य उपनिषद का यह मंत्र हम सब जानते हैं।
- यह सब कुप्रचार कितना गलत है इसके लिये एक उदाहरण ही पर्याप्त होगा , ईशावास्य उपनिषद का एक ही मंत्र - ' विद्यांचाविद्यांच यस्तद्वेदोभयंसह।
- यह सब कुप्रचार कितना गलत है इसके लिये एक उदाहरण ही पर्याप्त होगा , ईशावास्य उपनिषद का एक ही मंत्र - ' विद्यांचाविद्यांच यस्तद्वेदोभयंसह।
- पूर्णता / अपूर्णता, शून्य/अशून्य का विचार ललित की पोस्ट में ईशावास्य उपनिषद के आदि श्लोक से उपजता है और वैज्ञानिक चेतना से पुष्ट होता हुआ मानव संबंधों में भी मुखरित होता है.
- सर्वप्रथम ईशावास्य उपनिषद में कहा गया है की जीवन और संपूर्ण संसार केवल परमात्मा का ही आवास है तथा मनुष्य को अपने पराए का भाव कभी भी मन में नहीं लाना चाहि ए .
- भोग की कामनाओं से मुक्त होना एक लम्बा विषय है जिस पर चर्चा यहां अभीष्ट नहीं ; किन्तु संक्षेप में ईशावास्य उपनिषद के प्रथम मंत्र के द्वारा महत्वपूर्ण प्रकाश डाला जा सकता है :
- ईशावास्य उपनिषद के आरंभ में आया यह श्लोक निश्चित ही ऐसे मस्तिष्क की रचना है जो गणित और दर्शन दोनों का ज्ञाता था - ‘ ओम् पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्चते , पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।
- पूर्णता / अपूर्णता , शून्य / अशून्य का विचार ललित की पोस्ट में ईशावास्य उपनिषद के आदि श्लोक से उपजता है और वैज्ञानिक चेतना से पुष्ट होता हुआ मानव संबंधों में भी मुखरित होता है .