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ईषत का अर्थ

ईषत अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था , चारों ओर अंधकार ही अंधकार परिव्याप्त था तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी।
  2. 322 ईषत / अंत : स्थ व्यंजन अथवा अर्ध स्वर व्यंजन कहलाते है - य , र , ल , व को अंत : स्थ व्यंजन कहते है।
  3. स्पष्ट है … वेदों में सृष्टि खंड पढ़िए …सब कुछ पता चल जायगा . .वहां सब-एटोमिक पार्टिकल का भी वर्णन है….अथवा मेरी पुस्तक ‘ सृष्टि ‘ ईषत इच्छा या बिगबेंग -एक अनुत्तरित- उत्तर' महाकाव्य पढ़िए हिन्दी में …और भी स्पष्ट होजायगा…..
  4. हुई अवतरित व्यक्त भाव बन , रूप - सृष्टि १ ५ की मूल ऊर्जा , जो - सत तम रज साम्यावस्था में , थी स्थित उस शांत प्रकृति १ ६ में ॥ ११ - उस अनंत की ईषत इच्छा , उभरी बन कर ॐ रूप में ।
  5. ‘ परन्तु शक्ति स्वेच्छा से कहाँ कार्य करती है | वह तो पुरुष या ब्रह्म की इच्छानुसार ही क्रियाशील होती है | “ एकोहं बहुस्याम “ की ईषत इच्छा से ही तो प्रकृति चेतन होकर संसार रचती है | अर्था त . .. ब्रह्म - प्रकृति , नर-नारी , दोनों ही आवश्यक हैं सृष्टि हेतु , संसार के लिए , संसार के सहज सामंजस्य के लिए |
  6. हिरण्यगर्भ रूप में , जब मैं स्रष्टि को प्रकट करने की इच्छा करता हूं तो- “एकोहं बहुस्याम” की ईषत इच्छा, पुनः 'ओ३म' रूप में प्रतिध्वनित होकर, मुझमें अन्तर्निहित अव्यक्त मूल-प्रक्रिति, आदि-ऊर्ज़ा को व्यक्त रूप में अवतरित कर देती है और वह 'माया' या 'आदि-शक्ति' के रूप में प्रकट व क्रियाशील होकर, जगत व प्रक्रति की रचना के लिये, ऊर्ज़ा तरंगों, विभिन्न कणों एवं भूतों की रचना करती है;
  7. ३ . एकोहम बहुस्याम - वैदिक सूक्त - “ स एकाकी नैव रेमे .... ” व “ कुम्भे रेत मनसो .... ” के अनुसार व्यक्त ब्रह्म हिरण्य गर्भ के सृष्टि हित ईक्षण - तप व ईषत - इच्छा - एकोअहम बहुस्याम - ( अब में एक से बहुत हो जाऊं -जो प्रथम सृष्टि हित काम संकल्प , मनो रेत : संकल्प था ) उस साम्य अर्णव में ' ॐ ' के अनाहत नाद रूप में स्पंदित हुई।
  8. हिरण्यगर्भ रूप में , जब मैं स्रष्टि को प्रकट करने की इच्छा करता हूं तो- “ एकोहं बहुस्याम ” की ईषत इच्छा , पुनः ' ओ ३ म ' रूप में प्रतिध्वनित होकर , मुझमें अन्तर्निहित अव्यक्त मूल-प्रक्रिति , आदि-ऊर्ज़ा को व्यक्त रूप में अवतरित कर देती है और वह ' माया ' या ' आदि-शक्ति ' के रूप में प्रकट व क्रियाशील होकर , जगत व प्रक्रति की रचना के लिये , ऊर्ज़ा तरंगों , विभिन्न कणों एवं भूतों की रचना करती है ;
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