उतारन का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- मानसिक यातनाएँ असह्य बन जाने पर जातक आत्महत्या करने पर भी उतारन हो सकता है।
- अन्ना के अनिश्चितकालीन अनशन में किरण बेदी होंगी शामिल राहुल गांधी के सामने कुमार विश्वास को उतारन
- ठाठ-बाट से रहने वाले पिता जवान बेटे की उतारन पहनने के लिए विवश थे , लेकिन उन्हें कभी खीझते-झींकते ...
- मज़े की बात है ऐसी मांग करनेवाले कथित प्रगतिशील ही हैं जिन्हें कलावाद की पचास साल पुरानी उतारन पहनने में आज शर्म की जगह गर्व की अनुभूति हो रही है।
- मुक्त भाव से लोगों को चीजें देने वाले . ...ठाठ-बाट से रहने वाले पिता जवान बेटे की उतारन पहनने के लिए विवश थे ,लेकिन उन्हें कभी खीझते-झींकते ...दुखी होते या शिकायत करते नहीं देखा ।
- ' मैं वहां हूं' कविता में वे लिखते हैं- यह जो कीचड़ उलीचती है यह जो मनियार सजाती है यह जो कंधे पर चूड़ी की पोटली लिए गली-गली झांकती है यह जो दूसरों का उतारन फींचती है यह जो रद्दी बटोरता है
- एक फटा-सा टाट का टुकड़ा , दो मिट्टी के कसोरे और एक धोती , जो सुरेश बाबू की उतारन थी , जाड़ा , गरमी , बरसात हरेक मौसम में वह जगह एक-सी आरामदेह थी और भाग्य का बली मंगल झुलसती हुई लू , गलते हुए जाड़े और मूसलाधार वर्षा में भी जिन्दा और पहले से कहीं स्वस्थ था।
- “हा हा हा हा हा इब ताऊ जी जब मोटर साइकिल थम चलोगे , गोन्द के लड्डू भी थम ही खाओगे ते फ़िर कर्जा भी तमने ही चुकाना होगा न , इब ये तो बडी नाइन्सफ़ी हो रही गावं वालों के साथ हैं ....., तो नूय करें हम भी पुन्य क्मा लेतें हैं , कर्जा उतारन में हम थारी मदद कर देतें हैं , लड्डू और मोटर साइकिल थम म्हारे साथ आधा आधा बाँट ल्यो इब न मत करयो देखो हाँ , ..”
- ' मैं वहां हूं' कविता में वे लिखते हैं- यह जो कीचड़ उलीचती है यह जो मनियार सजाती है यह जो कंधे पर चूड़ी की पोटली लिए गली-गली झांकती है यह जो दूसरों का उतारन फींचती है यह जो रद्दी बटोरता है चौका लीपता है, बासन माँजता है, ईंटे उछालता है पीड़ित श्रमरत मानव अविजित दुर्जेय मानव कर्मकार, श्रमकर, शिल्पी, सृष्टा-उसकी मैं कथा हूँ देश भर में घूमते रहने का ही प्रभाव रहा कि देश के नदी, तालाबों, झीलों, सरोवरों, सागरों, मरुस्थलों, वन-पर्वतों, पशु-पक्षियों से घनिष्ठता से जुड़ते रहे।
- ' मैं वहां हूं' कविता में वे लिखते हैं- यह जो कीचड़ उलीचती है यह जो मनियार सजाती है यह जो कंधे पर चूड़ी की पोटली लिए गली-गली झांकती है यह जो दूसरों का उतारन फींचती है यह जो रद्दी बटोरता है चौका लीपता है, बासन माँजता है, ईंटे उछालता है पीड़ित श्रमरत मानव अविजित दुर्जेय मानव कर्मकार, श्रमकर, शिल्पी, सृष्टा-उसकी मैं कथा हूँ देश भर में घूमते रहने का ही प्रभाव रहा कि देश के नदी, तालाबों, झीलों, सरोवरों, सागरों, मरुस्थलों, वन-पर्वतों, पशु-पक्षियों से घनिष्ठता से जुड़ते रहे।