ऋभु का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- वे विचारों का संयुक्त परिवार परिसर बनाने की कोशिश करते रहे , वे कलाओं का संयुक्त परिवार परिसर बनाने की कोशिश करते रहे और वे एक ऐसा संयुक्त घर बनाने की कोशिश करते रहे जिसमें रहते दिदिया-काका , अम्मा-दादा , बाबा / ऋभु के सा थ. ..
- प्रियव्रत के वंश का वर्णन द्वीपों और वर्षों का वर्णन पाताल और नरकों का कथन , सात स्वर्गों का निरूपण अलग अलग लक्षणों से युक्त सूर्यादि ग्रहों की गति का प्रतिपादन भरत चरित्र मुक्तिमार्ग निदर्शन तथा निदाघ और ऋभु का संवाद ये सब विषय द्वितीय अंश के अन्तर्गत कहे गये हैं।
- प्रियव्रत के वंश का वर्णन द्वीपों और वर्षों का वर्णन पाताल और नरकों का कथन , सात स्वर्गों का निरूपण अलग अलग लक्षणों से युक्त सूर्यादि ग्रहों की गति का प्रतिपादन भरत चरित्र मुक्तिमार्ग निदर्शन तथा निदाघ और ऋभु का संवाद ये सब विषय द्वितीय अंश के अन्तर्गत कहे गये हैं।
- यह अच् छी बात है कि यहॉं जीवन इतना तो मिला होता जैसी कातर गुहार नहीं है बल् कि एक ऐसे घर की ख् वाहिश है जिसमें दिदिया , काका , अम् मा , दादा , बाबा और ऋभु साथ साथ रहते . यानी कई पीढ़ियॉं एक साथ सॉंस लेतीं .
- इसी प्रकार संन्यास कर्म में भी मोह माया का त्याग ही संन्यासी को ब्रह्म के समीप ले जाने में सक्ष्म है और ब्रह्म को प्राप्त करने के पश्चात अन्य किसी वस्तु की चाह नहीं रहती मुक्ति को आधार प्राप्त हो जाता है , बडे़ बडे़ ऋषि-मुनियों ने परमहंस को प्राप्त किया है अरूणी , श्वेतकेतु , दुर्वासा , ऋभु , दत्तात्रेय आदि ऋषियों ने इस परम तत्व को जाना अपने मोह त्याग द्वारा वह श्रेष्ठ कहला ए.
- इसी प्रकार संन्यास कर्म में भी मोह माया का त्याग ही संन्यासी को ब्रह्म के समीप ले जाने में सक्ष्म है और ब्रह्म को प्राप्त करने के पश्चात अन्य किसी वस्तु की चाह नहीं रहती मुक्ति को आधार प्राप्त हो जाता है , बडे़ बडे़ ऋषि-मुनियों ने परमहंस को प्राप्त किया है अरूणी , श्वेतकेतु , दुर्वासा , ऋभु , दत्तात्रेय आदि ऋषियों ने इस परम तत्व को जाना अपने मोह त्याग द्वारा वह श्रेष्ठ कहला ए.
- जिसमें जगत के स्वरूप , मोह माया की निंदा , संसार का अनित्य एवं दुखमय होना इन सभी को समझ पाने की जिज्ञासा प्रकट करते हुए ऋभु से अपने बारे में कहते हैं कि सृष्टि को मैं इस प्रकार समझ पाया हूँ की संसार में सभी कुछ नश्वर है मोह माया से त्याग ही मोक्ष का मार्ग निर्धारित करता है देह की नश्वरता उसके प्रति मुक्ति का भाव ही प्रमुख है और वैराग्य से तत्त्व जिज्ञासा का शमन किया जाता है .