एकवाक्यता का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- लेकिन जब यह समझमें आया कि इस कारण लेखन-तंत्रकी एकवाक्यता एवं आदान-प्रदान को खतरा है तो अपने अपने निर्देश-समूहोंको भुलाकर सबने अंग्रेजीके लिये एक स्टॅण्डर्ड अपनाया जिसका नाम था
- अतः उपक्रम ( आरम्भ ) और उपसंहार की एकवाक्यता से निर्णीत होता है कि उपक्रम सा त्वस्मिन् परमप्रेमरूपा सूत्र में अस्मिन् का अर्थ भगवान् मे - यही है ।
- लेकिन जब यह समझमें आया कि इस कारण लेखन-तंत्रकी एकवाक्यता एवं आदान-प्रदान को खतरा है तो अपने अपने निर्देश-समूहोंको भुलाकर सबने अंग्रेजीके लिये एक स्टॅण्डर्ड अपनाया जिसका नाम था ASCII ।
- आपने यह सिद्ध किया कि इसी अर्थ का निर्णय श्रीहरि ने सभी वेदवाक्यों , रामायण, महाभारत, पंचरात्र तथा अन्य शास्त्रवचनों ओर व्याससूत्रों में एकवाक्यता स्थापित करते हुए इसके रहस्य का, हार्द का श्रीमद्भगवतद्गीता में निर्णय किया है।
- यदि सर्वसम्मत हो तो ऐसा करना , अथवा हो जाना असम्भव नहीं , किन्तु मैं समझता हूँ इसमें एकवाक्यता न होगी , क्योंकि यह आवश्यक नहीं है कि संस्कृत के अनुसार ही हिन्दी भाषा के सब प्रयोग हों।
- इस प्रकार के वाक्यों की विधि-वाक्यों के साथ ' एकवाक्यता ' का उपपादन मीमांसकों ने किया है- विधिना तु एकवाक्यत्वात् स्तुत्यर्थेन विधीनां स्यु : [ 16 ] उनके अनुसार विधि और अर्थवाद वचनों के मध्य परस्पर शेषशेषिभाव अथवा अङ्गाङिगभाव है।
- इस प्रकार के वाक्यों की विधि-वाक्यों के साथ ' एकवाक्यता ' का उपपादन मीमांसकों ने किया है- विधिना तु एकवाक्यत्वात् स्तुत्यर्थेन विधीनां स्यु : [ 16 ] उनके अनुसार विधि और अर्थवाद वचनों के मध्य परस्पर शेषशेषिभाव अथवा अङ्गाङिगभाव है।
- आपने यह सिद्ध किया कि इसी अर्थ का निर्णय श्रीहरि ने सभी वेदवाक्यों , रामायण , महाभारत , पंचरात्र तथा अन्य शास्त्रवचनों ओर व्याससूत्रों में एकवाक्यता स्थापित करते हुए इसके रहस्य का , हार्द का श्रीमद्भगवतद्गीता में निर्णय किया है।
- यहाँ यह ज्ञातव्य है कि प्रयोगविधि के वाक्य साक्षात उपलब्ध नहीं होते , अपितु प्रधान वाक्य ( दर्शपूर्णमासाभ्याम् ) - के साथ अंग-वाक्यों ( सामधेयजति 0 ) - की एकवाक्यता होकर कल्पित वाक्य ( प्रमाणानुयाजादिभिरूपकृतवद्भ्यां दर्शपूर्णमासाभ्यां स्वर्गकामो यजेत ) ही प्रयोगविधि का परिचायक होता है।
- विधि और अर्थवाद-वाक्यों की एकवाक्यता को स्पष्ट करने के लिए ताण्ड्य महाब्राह्मण से एक उदाहरण प्रस्तुत है- षष्ठ अध्याय के सप्तम खण्ड में अग्निष्टोमानुष्ठान की प्रक्रिया में बहिष्पवमान स्तोत्र के निमित्त अध्वर्यु की प्रमुखता में उद्गाता प्रभृति पाँच ॠत्विजों के सदोमण्डप से चात्वाल-स्थान तक प्रसर्पण का विधान है-बहिष्पवमानं प्रसर्पन्ति।