कौंधना का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- लेकिन अमेरिका में कंपनियां जिस तरह से काम करती हैं और प्रशासन तंत्र जैसे उनका हिस्सा बनता है उसे देखते हुए कई बार जेहन में सवालों का कौंधना लाजिमी भी होता है .
- टीआरपी को आँकने वाले स्रोत कौन-कौन से हैं एवं इसके निर्धारण में किस तरह से मानकों का प्रयोग किया जाता है जैसे प्रश्नों का आम आदमी के मन में कौंधना स्वभाविक है।
- लेकिन , इन आशयों का उस दर्शक के चित्त में कौंधना लाजिमी है, जिसे यूरोप के इतिहास में जिज्ञासा और सर्जनात्मकता के साथ चर्च ( केवल कैथॉलिक ही नहीं, प्रोटेस्टेंट चर्च भी) के रवैये का इतिहास मालूम हो।
- वितथ प्राण आकुल हो तुमको निहारते तब मेघों का कर आमंत्रित , पीयूष बरसाते हो वह उमड़ - घुमड़ , बादलों का गर्जन पल -पल बिजली का कौंधना विभीषिका हमें कंपाती , पर तुम बेखबर रहते मौसम की अंगड़ाई अवश्यम्भावी है ।
- अब इन परिस्थितियों में जनता जनार्दन के दिल दिमाग में यह प्रश्न कौंधना स्वाभाविक ही है कि कहीं कांग्रेस की सुविचारित रणनीति के तहत सरकार का जनसंपर्क महकमा इंस्टूमेंट बनकर भारतीय जनता पार्टी के विधायकों के खिलाफ माहौल तो नहीं बना रहा है ?
- जिनमें कहीं बदली का छाना , बिजली का कौंधना, मिट्टी की सोंधी गंध का महकना है तो कहीं सीधी सरल चिड़िया कवि को सोने से जगाती है, झींगुर-दादुर का संगीत गूँजता है और कहीं चमेली की सुवास में कवि संसार और स्वयं को भूलकर मंत्रमुग्ध हो जाता है।
- जनता जनार्दन के मानस पटल पर यह प्रश्न कौंधना स्वाभाविक ही है कि आखिर कुंवर अर्जुन सिंह जैसा राजनीतिज्ञ इतना बड़ा बोझ लेकर 26 साल तक शांत कैसे बैठा रहा ? आखिर क्या वजह थी कि इतने सालों में कुंवर अर्जुन सिंह ने अपनी जुबान खोलने की जहमत नहीं उठाई।
- प्रत्येक साहित्यकार के मन में लिखते समय यह सवाल अवश्य कौंधना चाहिए , कि हम इसे क्यों लिख रहे हैं | क्या उस ‘ स्वान्तः-सुखाय ' के लिए , जिसे साहित्य के एक लम्बे दौर में प्रचारित-प्रसारित किया गया , और जिसे आज भी कुछ लोग अपने सीने से चिपकाए घूमते हैं ?
- ऐसे में यह सवाल कौंधना स्वाभाविक है कि ऐसे अनन्य भक्त बजरंगी और उनकी ही सरकार में मंत्री रही माया कोडनानी के लिए फांसी की सजा मांगने के लिए तैयार कैसे हो गई ? हालांकि अब तक हिंदूवादी संगठनों की ओर से इस पर कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं आई है , मगर मोदी के राजनीतिक गुरु रहे शंकर सिंह वाघेला ने जरूर इसे सियासी स्टंट बताया है।
- ‘ आह्लाद ' , ‘ आसक्ति ' , ‘ मंत्रमुग्ध ' , ‘ हवा ' , आदि प्रकृति-चित्राण की कविताएँ हैं ; जिनमें कहीं बदली का छाना , बिजली का कौंधना , मिट्टी की सोंधी गंध का महकना है तो कहीं सीधी सरल चिड़िया कवि को सोने से जगाती है , झींगुर-दादुर का संगीत गूँजता है और कहीं चमेली की सुवास में कवि संसार और स्वयं को भूलकर मंत्रमुग्ध हो जाता है।