क्रोधहीन का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- एक बार लोक कल्याण के लिए प्रद्युम्न की माता रूक्मिणी ने लक्ष्मी जी से पूछा - ' देवी ! आप किस स्थान पर और किस प्रकार के मनुष्यों के पास रहती हंै ? लक्ष्मी जी ने उत्तर दिया - ' जो मनुष्य मितभाषी , कार्य कुशल , क्रोधहीन , भक्त , कृतज्ञ , जितेंद्रिय और उदार है , उनके यहां मेरा निवास होता है।
- एक बार लोक कल्याण के लिए प्रद्युम्न की माता रूक्मिणी ने लक्ष्मी जी से पूछा - ' देवी ! आप किस स्थान पर और किस प्रकार के मनुष्यों के पास रहती हंै ? लक्ष्मी जी ने उत्तर दिया - ' जो मनुष्य मितभाषी , कार्य कुशल , क्रोधहीन , भक्त , कृतज्ञ , जितेंद्रिय और उदार है , उनके यहां मेरा निवास होता है।
- जो इस व्रत को करता है उसे कुछ नियम मानने पड़ते हैं , यथा अहिंसा , सत्य , अक्रोध , ब्रह्मचर्य , दया , क्षमा का पालन करना होता है , उसे शांत मन , क्रोधहीन , तपस्वी , मत्सरहित होना चाहिए ; इस व्रत का ज्ञान उसी को दिया जाना चाहिए जो गुरुपादानुरागी हो , यदि इसके अतिरिक्त किसी अन्य को यह दिया जाता है तो ( ज्ञानदाता ) नरक में पड़ता है।
- जो इस व्रत को करता है उसे कुछ नियम मानने पड़ते हैं , यथा अहिंसा , सत्य , अक्रोध , ब्रह्मचर्य , दया , क्षमा का पालन करना होता है , उसे शांत मन , क्रोधहीन , तपस्वी , मत्सरहित होना चाहिए ; इस व्रत का ज्ञान उसी को दिया जाना चाहिए जो गुरुपादानुरागी हो , यदि इसके अतिरिक्त किसी अन्य को यह दिया जाता है तो ( ज्ञानदाता ) नरक में पड़ता है।
- एक बार भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी रुक्मिणी अपनी अभिन्नरूपा लक्ष्मी से भेंट करने वैकुण्ठ पधारीं और वहां लक्ष्मी जी को भगवान विष्णु के समीप बैठी देखकर बड़ी प्रसन्न हुईं फिर लोक कल्याण के लिए रुक्मिणी जी ने देवी लक्ष्मी से पूछा , ‘ देवी , आप किस स्थान पर और कैसे मनुष्य के पास रहती हैं ? ' लक्ष्मी ने उत्तर दिया , ‘ हे देवी जो मनुष्य मधुरभाषी , कार्यकुशल , क्रोधहीन , भक्त , कृतज्ञ , जितेन्द्रीय
- एक बार भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी रुक्मिणी अपनी अभिन्नरूपा लक्ष्मी से भेंट करने वैकुण्ठ पधारीं और वहां लक्ष्मी जी को भगवान विष्णु के समीप बैठी देखकर बड़ी प्रसन्न हुईं फिर लोक कल्याण के लिए रुक्मिणी जी ने देवी लक्ष्मी से पूछा , ‘ देवी , आप किस स्थान पर और कैसे मनुष्य के पास रहती हैं ? ' लक्ष्मी ने उत्तर दिया , ‘ हे देवी जो मनुष्य मधुरभाषी , कार्यकुशल , क्रोधहीन , भक्त , कृतज्ञ , जितेन्द्रीय
- एक बार भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी रुक्मिणी अपनी अभिन्नरूपा लक्ष्मी से भेंट करने वैकुण्ठ पधारीं और वहां लक्ष्मी जी को भगवान विष्णु के समीप बैठी देखकर बड़ी प्रसन्न हुईं फिर लोक कल्याण के लिए रुक्मिणी जी ने देवी लक्ष्मी से पूछा , ‘ देवी , आप किस स्थान पर और कैसे मनुष्य के पास रहती हैं ? ' लक्ष्मी ने उत्तर दिया , ‘ हे देवी जो मनुष्य मधुरभाषी , कार्यकुशल , क्रोधहीन , भक्त , कृतज्ञ , जितेन्द्रीय और उदार हैं , उनके यहां मेरा निवास होता है।
- एक बार भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी रुक्मिणी अपनी अभिन्नरूपा लक्ष्मी से भेंट करने वैकुण्ठ पधारीं और वहां लक्ष्मी जी को भगवान विष्णु के समीप बैठी देखकर बड़ी प्रसन्न हुईं फिर लोक कल्याण के लिए रुक्मिणी जी ने देवी लक्ष्मी से पूछा , ‘ देवी , आप किस स्थान पर और कैसे मनुष्य के पास रहती हैं ? ' लक्ष्मी ने उत्तर दिया , ‘ हे देवी जो मनुष्य मधुरभाषी , कार्यकुशल , क्रोधहीन , भक्त , कृतज्ञ , जितेन्द्रीय और उदार हैं , उनके यहां मेरा निवास होता है।