चेतन-शक्ति का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- कुण्डलिनी-शक्ति ( Serpent Fire ) - मूलाधार स्थित ‘ मूल ' जो शिव-लिंग कहलाता है , में साढ़े तीन फेरे में लिपटी हुई , सर्पिणी की आकृति की एक सूक्ष्म स्वतन्त्र नाड़ी होती है जिसमें आत्मा ( सः ) रूप शब्द-शक्ति अथवा चेतन-शक्ति पहुँचकर ‘ अहम् ' रूप जीव में परिवर्तित हो जाती है।
- अब जब जीव उर्ध्व गति के माध्यम से पुनः शिव बनना चाहता है , तब तो कुण्डलिनी-शक्ति मूल से उठकर सुषुम्ना के सहारे नाना प्रकार की उर्ध्व गतियों को प्राप्त करती और छोड़ती हुई आत्मा ( सः ) रूप शब्द-शक्ति अथवा चेतन-शक्ति से मिलकर जीव रूप ‘ अहम् ' हंसो रूप शिव-शक्ति हो जाती है।
- अतः इन उपरोक्त तीनों नाड़ियों में से अलग-अलग एक-एक की महिमा गाई जाय तो पार नहीं लगने को है और जहाँ तीनों मिलती हों , उनकी महिमा क्या बतलाई जाय ; उसमें भी जहाँ अविनाशी आत्मा ( सः ) रूपी चेतन-शक्ति रूपी अक्षय-वट हो , वह भी गुरु रूपी भारद्वाज की उपस्थिति हो तो इसकी महिमा को अवर्णनीय कहना अधिक उचित होगा।
- सुषुम्ना मानव शरीर के अन्तर्गत एक ऐसी विचित्र नाड़ी होती है जो मात्र आत्मा ( सः ) रूप शब्द-शक्ति या ब्रह्म-शक्ति अथवा शिव-शक्ति से ‘ अहम् ' रूप जीव बनना तत्पश्चात् योग-साधना के माध्यम से जीव रूप ‘ अहम् ' से आत्मा ( सः ) रूप शब्द-शक्ति अथवा ब्रह्म-शक्ति अथवा चेतन-शक्ति से मिलकर जीव रूप ‘ अहम् ' को शिव-शक्ति रूप हंसो बनने के लिए ही होती है इसके अतिरिक्त इसका और कोई कार्य नहीं होता है।
- इसी प्रकार यदि साधना जारी रही तो क्रमशः पहुँचते और विश्राम करते हुये यह मणिपूरक से अनाहत्-चक्र , अनाहत् से विशुद्ध-चक्र और विशुद्ध से आज्ञा-चक्र तक पहुँचकर ‘ अहम् ' रूप जीव को ‘ सः ' रूप चेतन-आत्मा से मुलाक़ात करा देती है जिसके परिणामस्वरूप ‘ अहम् ' रूप जीव ‘ सः ' रूप आत्मा अथवा चेतन-शक्ति से मिलकर शिव हो जाता है तत्पश्चात् शिव और शक्ति दोनों ‘ हंसो ' रूप में संयुक्त रूप में एक साथ ही रहने लगते हैं।