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जीव जगत् का अर्थ

जीव जगत् अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. ठीक जिस तरह जीव जगत् में डार्विन ने विकास के नियम का अनुसंधान किया , उसी तरह मानव इतिहास में मार्क्स ने विकास के नियम का अनुसंधान किया।
  2. ऐसे में यशोविजय सूरिजी महाराज का पिट्सबर्ग जाना , अपनी शल्य चिकित्सा कराना मुझे न केवल भला और आह्लादकारी लगा अपितु , ‘ जीव जगत् की बड़ी सेवा ' भी लगा।
  3. इस ग्रन्थ में ब्रह्म , जीव, जगत्, अन्तर्यामी आदि दर्शनिक तत्वों तथा कर्म, ज्ञान, भक्ति आदि आध्यात्मिक साधनों और उनसे प्राप्त होने वाले फलों पर श्री वल्लभाचार्य ने अपने शास्त्र-सम्मत निष्कर्षो को व्यक्त किया है।
  4. इस ग्रन्थ में ब्रह्म , जीव, जगत्, अन्तर्यामी आदि दर्शनिक तत्वों तथा कर्म, ज्ञान, भक्ति आदि आध्यात्मिक साधनों और उनसे प्राप्त होने वाले फलों पर श्री वल्लभाचार्य ने अपने शास्त्र-सम्मत निष्कर्षो को व्यक्त किया है।
  5. और मैँ यदि यह भी कह दूँ कि यह मानव जगत् मेँ ही नहीँ बल्कि सम्पूर्ण जीव जगत् का एकमात्र अलग -थलग रहने का कीर्तिमान स्थापित कर चुका है तो शायद यह अतिशंयोक्ति ना होगा।
  6. 17 मार्च , 1883 को कार्ल मार्क्स की समाधि के पास उनके मित्र और सहयोगी एंजिल ने कहा था, “”ठीक जिस तरह जीव जगत् में डार्विन ने विकास के नियम का अनुसंधान किया, उसी तरह मानव इतिहास में मार्क्स ने विकास के नियम का अनुसंधान किया।
  7. 17 मार्च , 1883 को कार्ल मार्क्स की समाधि के पास उनके मित्र और सहयोगी एंजिल ने कहा था, “”ठीक जिस तरह जीव जगत् में डार्विन ने विकास के नियम का अनुसंधान किया, उसी तरह मानव इतिहास में मार्क्स ने विकास के नियम का अनुसंधान किया।
  8. वैश्वानर , तेजस, और प्राज्ञ अवस्थाओं के सदृश त्रैमात्रिक ओंकार प्रपंच तथा पुनर्जन्म से आबद्ध है किंतु तुरीय की तरह अ मात्र ऊँ अव्यवहार्य आत्मा है जहाँ जीव, जगत् और आत्मा (ब्रह्म) के भेद का प्रपंच नहीं है और केवल अद्वैत शिव ही शिव रह जाता है।
  9. अनित्य अर्थात कार्य्य जो शरीर आदि स्थूल पदार्थ तथा लोकलोकान्तर में नित्यबुद्धि ; तथा जो नित्य अर्थात् ईश्वर , जीव, जगत् का कारण,क्रिया क्रियावान्, गुण गुणी और धर्म धर्मी हैं, इन नित्य पदार्थों का परस्पर सम्बन्ध है, इनमें अनित्य बुद्धि का होना, यह अविद्या का प्रथम भाग है |
  10. अनित्य अर्थात कार्य्य जो शरीर आदि स्थूल पदार्थ तथा लोकलोकान्तर में नित्यबुद्धि ; तथा जो नित्य अर्थात् ईश्वर , जीव, जगत् का कारण,क्रिया क्रियावान्, गुण गुणी और धर्म धर्मी हैं, इन नित्य पदार्थों का परस्पर सम्बन्ध है, इनमें अनित्य बुद्धि का होना, यह अविद्या का प्रथम भाग है |
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