तैत्तिरीय उपनिषद का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- शायद यही सत्य तैत्तिरीय उपनिषद के ( 3 .2) मंत्र में कहा गया है, “तपो ब्रह्मेति।” तप ही ब्रह्म है।
- तैत्तिरीय उपनिषद ' में इसी नाम के एक ऋषि का उल्लेख भी मिलता है किन्तु वे दूसरे हैं .
- - तैत्तिरीय उपनिषद इस ब्रह्म ( परमेश्वर ) की दो प्रकृतियाँ हैं पहली ' अपरा ' और दूसरी ' परा ' ।
- भोग और योग को समझने के लिए तैत्तिरीय उपनिषद के ऋषि ने इसे पंच कोशों में वर्गीकत किया है , जोकि इस प्रकार हैं-
- तैत्तिरीय उपनिषद के ऋषि ने दीक्षा पाए शिष्यों को लगातार अध्ययन प्रवचन करते हुए संतति प्रवाह को न तोड़ने के निर्देश दिए हैं - प्रजनश्च स्वाध्याय प्रवचने च और प्रजातंतु मा व्यवच्छेत्सीः।
- उन्होने भी कहा है और तैत्तिरीय उपनिषद ( शिक्षा वल्ली) में गुरु अपने शिष्यों से शिक्षा समापन के समय कहते हैं : “ जो हमारे गुण निन्दनीय नहीं हैं उनका ही अनुकरंण करना.”।
- ' तैत्तिरीय उपनिषद' में इसी नाम के एक ऋषि का उल्लेख भी मिलता है किन्तु वे दूसरे हैं.त्रिंशंकु दो ऋषियों -वसिष्ठ और विश्वामित्र की आपसी प्रतिद्वंदिता और द्वेष का शिकार होकर अधर में लटक गये.
- ' तैत्तिरीय उपनिषद' में इसी नाम के एक ऋषि का उल्लेख भी मिलता है किन्तु वे दूसरे हैं.त्रिंशंकु दो ऋषियों -वसिष्ठ और विश्वामित्र की आपसी प्रतिद्वंदिता और द्वेष का शिकार होकर अधर में लटक गये.
- ' तैत्तिरीय उपनिषद' में इसी नाम के एक ऋषि का उल्लेख भी मिलता है किन्तु वे दूसरे हैं.त्रिंशंकु दो ऋषियों -वसिष्ठ और विश्वामित्र की आपसी प्रतिद्वंदिता और द्वेष का शिकार होकर अधर में लटक गये.
- वास्तव में ' संस्कृत ' ही सबकी ' जननी ' है , यदि आप तैत्तिरीय उपनिषद देखें , तो वहाँ शिक्षा और व्याकरण आदि के संबंध में अत्यंत संक्षिप्त रूप से कहा गया है .