त्रसरेणु का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- अत : तीन द्यणुकों से त्रसरेणु की उत्पत्ति मानी जाती हे , जहाँ बहुत्व संख्या महत्परिमाण का जनक होती है।
- विश्वनाथ ने यह बताया कि द्वयणुक के परिमाण के प्रति परमाणुगत द्वित्वसंख्या और त्रसरेणु के परिमाण के प्रति द्वयणुकगत त्रित्वसंख्या असमवायिकारण है।
- विश्वनाथ ने यह बताया कि द्वयणुक के परिमाण के प्रति परमाणुगत द्वित्वसंख्या और त्रसरेणु के परिमाण के प्रति द्वयणुकगत त्रित्वसंख्या असमवायिकारण है।
- धूप में उङते हुये त्रसरेणु ( धूल जैसे कण ) को देखने से भी कण कण में समायी चेतना का एक रूप दिखायी देता है ।
- द्वयणुक तक गुणों में सूक्ष्मता तथा भूत में अव्यक्तावस्था रहती है , तथा त्रसरेणु में यह ( भूत ) प्रत्यक्षयोग्यता तथा महत् परिमाण वाला हो जाता है ।
- वायु पुराण में दिए गए विभिन्न काल खंडों के विवरण के अनुसार , दो परमाणु मिलकर एक अणु का निर्माण करते हैं और तीन अणुओं के मिलने से एक त्रसरेणु बनता है।
- ( ४ : ४ ० , पृ . ७ २ ) समीक्षक- ” जो एक त्रसरेणु ( तनिक ) भी खुदा अन्याय नहीं करता तो पुण्य को द्विगुणा क्यों देता ? और मुसलमानों का पक्षपात क्यों करता है ?
- गंथ गयी है वह जमीन मेरी आत्मा में सालती है मेरे उतप्त प्राण रचती है मेरी मेधा के त्रसरेणु जगाती है विस्मृत हो चुके कूपों में एक त्वरा , एक त्विषा कोंचती है अपने इतिहास का बल्लम मेरे शरीर में, पीड़ा की शिराओं के अंत तक तोड़ देती है अपने हठ की कटार
- सबसे सूक्ष्म टुकड़ा अर्थात जो काटा नहीं जाता उसका नाम परमाणु , साठ परमाणुओं से मिले हुए का नाम अणु , दो अणु का एक द्वयणुक जो स्थूल वायु है तीन द्वयणुक का अग्नि , चार द्वयणुक का जल , पांच द्वयणुक की पृथिवी अर्थात तीन द्वयणुक का त्रसरेणु और उसका दूना होने से पृथ्वी आदि दृश्य पदार्थ होते हैं।
- श्रीमद्भागवत में शुक देव मुनि बताते हैं- 2 परमाणु- 1 अणु , 3 अणु- 1 त्रसरेणु , 3 त्रसरेणु- 1 त्रुटि , 100 त्रुटि- 1 वेध , 3 वेध- 1 लव , 3 लव- 1 निमेष , 3 निमेष- 1 क्षण , 5 क्षण- 1 काष्ठा , 15 काष्ठा- 1 लघु , 15 लघु- 1 नाडि़का , 2 नाडि़का- 1 मुहूर्त , 30 मुहूर्त- 1 दिन-रात , 7 दिन-रात- 1 सप्ताह , 2 सप्ताह- 1 पक्ष , 2 पक्ष- 1 मास , 2 मास- 1 ऋतु , 3 ऋतु- 1 अयन , 2 अयन- 1 वर्ष।