देवापि का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- 2 ) , अग्नि का जन्म (5।11), श्यावाश्व (5।32), बृहस्पति का जन्म (6।71), राजा सुदास (7।18), नहुष (7।95), अपाला (8।91), नाभानेदिष्ठ (10।61।62), वृषाकपि (10।86), उर्वशी और पुरूरवा (10।95), सरमा और पणि (10।108), देवापि और शंतनु (10।98), नचिकेता (10।135),।
- वैवस्वत मनु से महाभारत तक के काल को वैदिक युग कहा गया है जिसमें ऋषिगण गृत्समद , वामदेव, विश्वमित्र, भारद्वाज, अत्रि, वशिष्ट, शिवि, प्रतर्दन, लोपामुद्रा, देवापि आदि रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर रचनाओं का निर्माण कर भारतीय साहित्य को पोषित किया।
- “ आप लोग ठीक कहते हैं , पर आपको विश्वास होना चाहिए कि मैं आपके कल्याण की बात में कुछ भी कमी नहीं रखूंगा | राजा का कार्य ही है कि वह सदा प्रजा का हितचिंतन करता थे | ” देवापि ने छिपे तरीके से शांतुन का पक्ष लिया |
- तपस्वी देवापि राजधानी में लौट आए | उनके आगमन से चारों ओर आनंद छा गया | दोनों भाइयों के सत्य पालन से अनावृष्टि समाप्त हो गई | यज्ञ की काली-काली धूम-रेखाओं ने गगन को आच्छादित कर लिया | बृहस्पति प्रसन्न हो उठे | पर्जन्य की कृपा-वृष्टि से नदी , तालाब , वृक्ष और खेतों के प्राण लौट आए | देवापि ने अपने सत्यव्रत से प्रजा की कल्याण साधना की |
- तपस्वी देवापि राजधानी में लौट आए | उनके आगमन से चारों ओर आनंद छा गया | दोनों भाइयों के सत्य पालन से अनावृष्टि समाप्त हो गई | यज्ञ की काली-काली धूम-रेखाओं ने गगन को आच्छादित कर लिया | बृहस्पति प्रसन्न हो उठे | पर्जन्य की कृपा-वृष्टि से नदी , तालाब , वृक्ष और खेतों के प्राण लौट आए | देवापि ने अपने सत्यव्रत से प्रजा की कल्याण साधना की |
- “ भाई ! मैं तो चर्मरोगी हूं | मेरी त्वचा दूषित है | मुझमें रोग के कारण राजकार्य की शक्ति नहीं थी , इसलिए प्रजा के कल्याण की दृष्टि से मैंने वन का रास्ता लिया था , यह सत्य बात है | पर इस समय अनावृष्टि के निवारण के लिए , बृहस्पति की प्रसन्नता के लिए मैं आपके वृष्टि काम-यज्ञ का पुरोहित बनूंगा | ” देवापि ने महाराज शांतुन को गले लगा लिया | प्रजा उनकी जय-जयकार करने लगी |
- “ महाराज की जय हो ! ” प्रजा नतमस्तक हो गई | शांतनु के राज्यभिषेक के बाद ही देवापि ने तप करने के लिए वन की ओर प्रस्थान किया | शांतनु राज्य का काम संभालने लगे | लेकिन एकाएक राज्य में अकाल पड़ गया | कोई उपाय जब वृष्टि करने में सफल न हो सका , तो महाराज शांतुन ने देवापि की शरण ली | शांतुन ने राज्य की स्थिति का वर्णन करते हुए प्रजा के कष्ट को हरने का उपाय बताने को कहा | शांतुन ने अपने बड़े भाई के चरण पकड़ लिए |
- “ महाराज की जय हो ! ” प्रजा नतमस्तक हो गई | शांतनु के राज्यभिषेक के बाद ही देवापि ने तप करने के लिए वन की ओर प्रस्थान किया | शांतनु राज्य का काम संभालने लगे | लेकिन एकाएक राज्य में अकाल पड़ गया | कोई उपाय जब वृष्टि करने में सफल न हो सका , तो महाराज शांतुन ने देवापि की शरण ली | शांतुन ने राज्य की स्थिति का वर्णन करते हुए प्रजा के कष्ट को हरने का उपाय बताने को कहा | शांतुन ने अपने बड़े भाई के चरण पकड़ लिए |