धर्मकाय का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- सर्वज्ञज्ञान में स्थित आवरणों का क्षय भी धर्मकाय है , उसे ' आगन्तुक विशुद्ध स्वभाव धर्मकाय ' कहते हैं।
- इस मत में स्वभाविशुद्ध स्वभावधर्मकाय नहीं होता , क्योंकि सर्वज्ञज्ञान में स्थित बाह्यार्थशून्यता इन विज्ञानवादियों के मत में धर्मकाय नहीं है।
- ऐसी स्थिति में जब कि सर्वज्ञज्ञान में स्थित शून्यता रूप में भी विद्यमान है , तो वह कैसे धर्मकाय हो सकती है।
- फलत : उनके मत में सर्वज्ञज्ञान में जो शून्यता स्थित है , वह धर्मकाय होती है , जिसे ' स्वभावविशुद्ध स्वभावधर्मकाय ' कहते हैं।
- महायान बौद्ध धर्म में , निर्वाण और संसार को जब धर्मकाय की परम प्रकृति के तौर पर देखा जाता है, तो ये दोनों पृथक-पृथक नहीं हैं.
- इस श्रेणी के टीकाकारों में प्रमाणवार्तिक के प्रमाणपरिच्छेद का अत्यधिक महत्त्व है , क्योंकि उसमें भगवान बुद्ध की सर्वज्ञता तथा उनके धर्मकाय आदि की सिद्धि की गई है।
- विज्ञानवादी मत में धर्मकाय तीन प्रकार का नहीं माना जा जाता , जैसा ऊपर कहा गया है , अपितु दो ही प्रकार का माना जाता है , यथा-
- द् र . - तथागतगुह्यसूत्र , शिक्षासमुच्चय में उद्धृत , पृ 0 89 ( दरभङ्गा संस्करण , 1996 ) / ref > * पुरश्च , तदनुसार बोधिसत्त्व धर्मकाय से प्रभावित होता है , इसलिए वह अपने दर्शन , श्रवण और स्पर्श से भी सत्त्वों का हित करता है।