नारायण ऋषि का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- मंदिर का निर्माण इतिहास : पुराण कथा अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे।
- अष् नारायण ऋषि कहते हैं जो पृथ्वी , जल तथा आकाश में पक्षियों के समान वेग पूर्वक चल सके , उसका नाम विमान है ।
- इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना का इतिहास संक्षेप में यह है कि हिमालय के केदार शृंग पर विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे।
- इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना का इतिहास संक्षेप में यह है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे।
- इसी भावना के मातहत समाज पर अपने प्रभ्ुात्व को , ईश्वरादेश बनाने की कामना से , नारायण ऋषि के हृदय में ÷ पुरुष सूक्त ' का प्रकाश हुआ।
- इसी भावना के मातहत समाज पर अपने प्रभ्ुात्व को , ईश्वरादेश बनाने की कामना से , नारायण ऋषि के हृदय में ÷ पुरुष सूक्त ' का प्रकाश हुआ।
- २ ९ . ७ ( नारद ऋषि द्वारा बदरिकाश्रम में नारायण ऋषि को प्रणाम करने पर नारायण द्वारा नारद का उत्थान करके आलिङ्गन आदि करने का उल्लेख ) , ४ . १ . ४ ७ . २ ( श्रीकृष्ण का सुख संभोग से उत्थान करके राधा के साथ मलयद्रोणी में वास का उल्लेख ) , ब्रह्माण्ड २ . ३ .
- कहते हैं , मैं स्वयं विश्व में आया बिना पिता के: तो क्या तुम भी, उसी भांति, सचमुच उत्पन्न हुई थीं माता बिना, मात्र नारायण ऋषि की कामेच्छा से, तप:पूत नर के समस्त संचित तप की आभा-सी? या समुद्र जब अंतराग़्नि से आकुल, तप्त, विकल था, तुम प्रसून-सी स्वयं फूट निकलीं उस व्याकुलता से, ज्यॉ अम्बुधि की अंतराग्नि से अन्य रत्न बनते है?
- उषा-सदृश प्रकटी थीं किन जलदॉ का पटल हटाकर ? कहते हैं , मैं स्वयं विश्व में आया बिना पिता के : तो क्या तुम भी , उसी भांति , सचमुच उत्पन्न हुई थीं माता बिना , मात्र नारायण ऋषि की कामेच्छा से , तप : पूत नर के समस्त संचित तप की आभा-सी ? या समुद्र जब अंतराग़्नि से आकुल , तप्त , विकल था , तुम प्रसून-सी स्वयं फूट निकलीं उस व्याकुलता से , ज्यॉ अम्बुधि की अंतराग्नि से अन्य रत्न बनते है ?
- विशेष रूप से विशालकाय छत्त पत्थरों को एक दूसरे से जोड़ते हुए इंटरलाकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया है , जो मंदिर को मजबूती देने के लिए नदी के बीचों बीच खड़े करने में सफल हुई हैं पुराण कथा अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महा-तपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे , जिनकी अराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने प्रकट होकर उनकी प्रार्थना ज्योतिलिंग के रूप में सदावास करने का वर प्रदान किया , जो केदारनाथ पर्वत राज हिमालय के केदार नाथ श्रृंग पर अवस्थित है।