निग्रहस्थान का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इन बाईस प्रकारों के निग्रहस्थान में अपसिद्धान्त तथा हेत्वाभास का व्यवहार तत्त्वनिर्णय के उद्देश्य से की गयी वाद कथा में होती है।
- इनमें भी दूषण की द्रष्टि से पूर्व की अपेक्षा उतरोत्तर ( बाद में आने वाले ) निकृष्ट है अर्थात निग्रहस्थान सर्व-निकृष्ट है।
- ये दूषित प्रयोग भी ४ प्रकार के होते हैं , जिनको हेत्वाभास , छल , जाति और निग्रहस्थान पदों से अभिव्यक्त करते हैं।
- ( प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अयवय, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति और निग्रहस्थान के तत्वज्ञान से मुक्ति प्राप्त होती है।)
- इससे वादी या प्रतिवादी की विप्रतिपत्ति विपरीतज्ञान या अप्रतिपत्ति- अज्ञान अनुमित होता है , अत : ये निग्रहस्थान [ 87 ] माने गये हैं।
- अभाव में - निग्रहस्थान ( अज्ञान , अप्रतिभा तथा विक्षेप ) तथा अपवर्ग ( दु : खों की आत्यन्तिक निवृत्ति ) का अन्तर्भाव हो जाता है।
- तत्त्वचिन्तामणि की असिद्धि भाग की दीक्षिति के अन्त में अघुनाथ शिरोमणि ने भी कहा है कि चकार से अन्य निग्रहस्थान भी अभिप्रेत [ 89 ] है।
- वादी या प्रतिवादी की विप्रतिपत्ति अर्थात किसी विषय में विपरीत ज्ञान , रूप भ्रम और बहुत स्थलों में अप्रतिपत्ति अर्थात अज्ञान इसके निग्रहस्थान होने में मूल है।
- ( १) प्रमाण, (२) प्रमेय, (३)संशय, (४) प्रयोजन, (५) दृष्टान्त, (६) सिद्धान्त, (७)अवयव, (८) तर्क (९) निर्णय, (१०) वाद, (११) जल्प, (१२) वितण्डा, (१३) हेत्वाभास, (१४) छल, (१५) जाति और (१६) निग्रहस्थान
- छल , जाति और निग्रहस्थान के उक्त भेदों के लक्षण और उदाहरण की जानकारी के लिए न्यायदर्शन के प्रथम अध्याय के द्वितीय आह्रिक तथा पंचम अध्याय और उनपर वात्स्यायन के न्यायभाष्य का अवलोकन करना चाहिए।