पन्नग का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- सेवत दरीन केते गब्बर गनीम रहैं , पन्नग पताल त्यों ही डरन खगेस के कहैं परताप धारा धाँसत त्रासत , कसमसत कमठ पीठि कठिन कलेस के।
- सेवत दरीन केते गब्बर गनीम रहैं , पन्नग पताल त्यों ही डरन खगेस के कहैं परताप धारा धाँसत त्रासत , कसमसत कमठ पीठि कठिन कलेस के।
- तो ब्रह्मा , विष्णु , इन्द्र , प्रमुख देवगण तथा पन्नग गण मेरे पास आ कर त्रिपुर का बध करने के लिए मेरी प्रार्थना करने लगे .
- २ . समीर पन्नग रस १२५ मिग्रा + मल्ल सिंदूर ६५ मिग्रा + त्रिभुवन कीर्ति रस १२५ मिग्रा की एक खुराक करें व इस तरह दिन में तीन खुराक गर्म जल से लीजिये।
- किन्तु इसके पहले यह निदान आवश्यक है कि उस व्यक्ति की कशेरुका ( Vertebral Gravity ) क्या है ? उसके अनुसार हीरा , पारा , यशद या पन्नग भष्म का प्रयोग करना चाहिए।
- समीन पन्नग रस लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग , मिश्री या मिश्री के शर्बत के साथ सुबह-शाम देने से श्वास नलिका या गले के अन्दर जमी कफ निकल जाती है जिससे खराश कम हो जाती है।
- २ . समीर पन्नग रस १ २ ५ मिग्रा + मल्ल सिंदूर ६ ५ मिग्रा + त्रिभुवन कीर्ति रस १ २ ५ मिग्रा की एक खुराक करें व इस तरह दिन में तीन खुराक गर्म जल से लीजिये।
- चिकित्सा इसकी एक चिकित्सा है , जिसे 6-7 मास तक नियमित रूप से बिना भूले-चूके, करना चाहिए- चोपचन्यादि चूर्ण 50 ग्राम, बंगभस्म, लौहभस्म, ताप्यादि लोह, तीनों 10-10 ग्राम, गन्धक रसायन 30 ग्राम, स्वर्णमाक्षिक भस्म व समीर पन्नग रस 5-5 ग्राम।
- १ ) अजमोदादी चूर्ण + षड-धरण चूर्ण + समीर पन्नग + जीरक + रस-पाचक + एरंड-मूल + दशमूल - सुबह शाम - गर्म जल से २) आम पाचक वटी - व्यानोदान १-१ ३) गन्धर्व हरीतकी चूर्ण - स्वप्न काले गरम पानी से योग बस्ती - दाशमूलिक निरुह + सहचरादी तेल मात्रा बस्ती अभ्यंग के लिए - सहचरादी / प्रसारिणी तेल + सैन्धव अत्यधिक शूल प्रदेशे - अग्नि कर्म सामता कम होने के बाद त्रयोदशांग, बलारिष्ट आदि का प्रयोग करे..
- महाक्रुद्ध रावण ने एक दिन युद्ध में घोर मेघ-नाद कर अष्टघंटा , महास्वना, शक्ति शत्रु-घातिनी तोल कर फेंकी यति लक्ष्मण के वक्ष पै, करती दिगन्त को ज्वलन्त ज्योति-पिंड सी, दीप्यमाना, महाद्युति, विद्युत के वेग से धंस गई उर में उरग-राज, जिह्व सी, धराशायी, लथ-पथ रक्त से लखन यों लगते थे लाल-लाल उस काल मानो कोई- पन्नग से परिगत अदभुत नग हो, या कि छिन्न पादप हो पुष्पित पलाश का, या कि रज्जु-मुक्त रक्त रंग की पताका हो, या कि तुंज-भंग तुंग मेरू गिरि-शृंग हो।