प्राणधारी का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- सुना जाता है कि इस धरती पर 84 लाख योनियाँ है अर्थात् इतने प्रकार के प्राणधारी जीवन धारी इस सृष्टि में निवास करते हैं ।
- जब मनुष्य और सृष्टि के अन्य प्राणधारी मिलकर इस प्रकार कार्य करते थे तो उस समय की अवस्था को ही मनुष्य की वास्तविक प्राकृतिक अवस्था माना जाता था।
- प्रत्येक प्राणधारी की अपने जीवन के प्रति यह अभिलाषा सदा बनी रहती है , कि “ मैं कभी मरूँ न , सदा ऐसा ही जीवित बना रहूँ ” ।
- चेतन-रूप स्रष्टि में-मैं , जीव , जीवात्मा , आत्मा या चेतना के रूप में प्रवेश करता हूं , जिसे जीवन या जीवित-सत्ता कहा जाता है ; प्राणधारी व प्राण भी।
- चेतन-रूप स्रष्टि में-मैं , जीव , जीवात्मा , आत्मा या चेतना के रूप में प्रवेश करता हूं , जिसे जीवन या जीवित-सत्ता कहा जाता है ; प्राणधारी व प्राण भी।
- रतिक्रिया का प्रचलन तो बहुत बाद में तब हुआ जब प्राणधारी एकलिंगी न रहकर द्विलिंगी बन गए और उन नर- मादा की जननेन्द्रियों स्पष्ट उभरीं तथा गर्भ धारण के योग्य हो गई ।।
- ( जीवों में प्राणधारी , प्राणधारियों में बुद्धिमान , बुद्धिमानों में मनुष् य एंव मनुष् यों में ब्राह्मण सर्वश्रेष् ठ कहे गये है ) सर्व स्वं ब्राह्मणस्येदं यत्कि चिज् जगतो गतम् श्रेष् ठ्येनाभिजनेनेदं सर्व वै ब्राह्मणोर्हति ( पृथ्वी पर जो कुछ धन है वह सब ब्रह्मण का है ।
- ' स्थावर जंगम पदार्थों प्राणधारी श्रेष्ठ हैं , प्राणधारियों में भी बुद्धि से काम लेनेवाले , बुद्धि वालों में भी मनुष्य , मनुष्यों में भी ब्राह्मण , ब्राह्मणों में भी विद्वान , विद्वानों में भी उत्तम कार्यों में कर्तव्य बुद्धिवाले , कर्तव्यबुद्धिवालों में भी उत्तम कार्यों के कर डालनेवाले , और उत्तम कार्यकर्ताओं में भी ब्रह्मवेत्ता अर्थात अपने ही आत्मा को सभी में ओत-प्रोत देखनेवाले।
- मंत्रार्थ - जो प्राणधारी चेतन और अप्राणधारी जड जगत का अपनी अनंत महिमा के कारण एक अकेला ही सर्वोपरी विराजमान राजा हुआ है , जो इस दो पैरों वाले मनुष्य आदि और चार पैरों वाले पशु आदि प्राणियों की रचना करता है और उनका सर्वोपरी स्वामी है, हम लोग उस सुखस्वरूप एवं प्रजापालक शुद्ध एवं प्रकाशस्वरूप, दिव्यसामर्थ्ययुक्त परमात्मा की प्रप्ति के लिये योगाभ्यास एवं हव्य पदार्थों द्वारा विशेष भक्ति करते हैं ।
- मंत्रार्थ - जो प्राणधारी चेतन और अप्राणधारी जड जगत का अपनी अनंत महिमा के कारण एक अकेला ही सर्वोपरी विराजमान राजा हुआ है , जो इस दो पैरों वाले मनुष्य आदि और चार पैरों वाले पशु आदि प्राणियों की रचना करता है और उनका सर्वोपरी स्वामी है , हम लोग उस सुखस्वरूप एवं प्रजापालक शुद्ध एवं प्रकाशस्वरूप , दिव्यसामर्थ्ययुक्त परमात्मा की प्रप्ति के लिये योगाभ्यास एवं हव्य पदार्थों द्वारा विशेष भक्ति करते हैं ।