बेअक़्ल का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- कब मुझे रास्ता दिखाती है रौशनी यूं ही बरग़लाती है शाम ढलते ही लौट जाती है वैसे इस घर में धूप आती है अक़्ल , बेअक़्ल इस कदर भी नहीं फिर भी अक्सर फरेब खाती है जाने क्या चाहती है याद उसकी पास आती है , लौट जाती है मांगता हूँ मैं खुद से खुद का हिसाब [ … ]
- उसे अच्छी तरह याद है , शादी के बाद जब पहली बार बड़े शौक से उसने यह सब्जी बनाई थी तो आशू ने बिना चखे ही सब्ज़ी का कटोरा उठा कर नाली में पलट दिया था ,“ बिल्कुल ही बेअक़्ल , बेवकूफ़ हो क्या ? कभी पत्तागोभी रसेदार बनती है क्या ? ज़रा भी शऊर नहीं है इसे...।” वह आशू के व्यवहार या कटूक्ति से उतनी आहत नहीं हुई थी , जितनी उसके इस प्रकार अपमानित होने पर वहाँ आई जेठानी को होंठ तिरछे करके मुस्कराते देख कर हुई थी।