मथित का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- रागात्मक विचार निरन्तर मथित अथवा चिन्तित होकर इतने दृढ़ और अपरिवर्तनशील हो जाते हैं कि वे मनुष्य के विषय व्यक्तित्व के अभिन्न अंग की भाँति दूर से ही झलकने लगते हैं।
- चूँकि इस समय समान परिस्थितियों तथा प्रभावों से सारा भारतीय जीवन मथित तथा आंदोलित हुआ था , अत: यह कहा जा सकता है कि आधुनिक कन्नड साहित्य की गतिविधि की कहानी अन्य प्रादेशिक भाषाओं के साहित्य की कहानी से कुछ भिन्न नहीं हैं।
- चूँकि इस समय समान परिस्थितियों तथा प्रभावों से सारा भारतीय जीवन मथित तथा आंदोलित हुआ था , अत: यह कहा जा सकता है कि आधुनिक कन्नड साहित्य की गतिविधि की कहानी अन्य प्रादेशिक भाषाओं के साहित्य की कहानी से कुछ भिन्न नहीं हैं।
- माचवे जी ने स् वयं इस आलेख के संबंध में लिखा है कि ' ' यद्यपि मेरा विचार इस स् तम् भ में केवल साहित्यिक चर्चा करने का ही है , फिर भी इस बार भाषा के प्रश् न ने देश का मानस इस तरह से कथित और मथित कर दिया है कि -
- कामना-तरंगों से अधीर जब विश्वपुरुष का हृदय-सिन्धु आलोड़ित , क्षुभित, मथित होकर, अपनी समस्त बड़वाग्नि कण्ठ में भरकर मुझे बुलाता है, तब मैं अपूर्वयौवना पुरुष के निभृत प्राणतल से उठकर प्रसरित करती निर्वसन, शुभ्र, हेमाभ कांति कल्पना लोक से उतर भूमि पर आती हूँ, विजयिनी विश्वनर को अपने उत्तुंग वक्ष पर सुला अमित कल्पों के अश्रु सुखाती हूँ.
- कामना-तरंगों से अधीर जब विश्वपुरुष का हृदय-सिन्धु आलोड़ित , क्षुभित , मथित होकर , अपनी समस्त बड़वाग्नि कण्ठ में भरकर मुझे बुलाता है , तब मैं अपूर्वयौवना पुरुष के निभृत प्राणतल से उठकर प्रसरित करती निर्वसन , शुभ्र , हेमाभ कांति कल्पना लोक से उतर भूमि पर आती हूँ , विजयिनी विश्वनर को अपने उत्तुंग वक्ष पर सुला अमित कल्पों के अश्रु सुखाती हूँ .
- कामना-तरंगों से अधीर जब विश्वपुरुष का हृदय-सिन्धु आलोड़ित , क्षुभित , मथित होकर , अपनी समस्त बड़वाग्नि कण्ठ में भरकर मुझे बुलाता है , तब मैं अपूर्वयौवना पुरुष के निभृत प्राणतल से उठकर प्रसरित करती निर्वसन , शुभ्र , हेमाभ कांति कल्पना लोक से उतर भूमि पर आती हूँ , विजयिनी विश्वनर को अपने उत्तुंग वक्ष पर सुला अमित कल्पों के अश्रु सुखाती हूँ .
- क्षितिज तक फ़ैला हुआ सा , मृत्यु तक मैला हुआ सा, क्षुब्ध, काली लहर वाला मथित, उत्थित जहर वाला, मेरु वाला, शेष वाला शम्भु और सुरेश वाला एक सागर जानते हो, उसे कैसा मानते हो? ठीक वैसे घने जंगल, नींद मे डूबे हुए से ऊँघते अनमने जंगल| धँसो इनमें डर नहीं है, मौत का यह घर नहीं है, उतर कर बहते अनेकों, कल-कथा कहते अनेकों, नदी, निर्झर और नाले, इन वनों ने गोद पाले।
- सतपुड़ा के घने जंगल नींद में डूबे हुए-से ऊँघते अनमने जंगल जागते अँगडाइयों में खोह खडडों खाइयों में घास पागल , काश पागल, शाल और पलाश पागल, लता पागल, वात पागल, डाल पागल, पात पागल, मत्त मुर्गे और तीतर, इन वनों के खूब भीतर! क्षितिज तक फैला हुआ-सा मृत्यु तक मैला हुआ-सा, क्षुब्ध काली लहर वाला, मथित, उत्थित जहर वाला मेरू वाला, शेष वाला, शंभु और सुरेश वाला, एक सागर जानते हो? उसे कैसे मानते हो? ठीक वैसे घने जंगल, नींद में डूबे हुए-से ऊँघते अनमने जंगल।
- मैं उसका पीड़ा से मथित चेहरा पढ रही थी | औरत ना होकर जैसे वो एक उतरन बन गई थी |सोच रही थी- इंसान भूखा भेड़िया बन गया है , तभी तो अपनी भूख और हवस मिटाने को वो इतना नीचे गिर पाता है | मैं केवल शबनम का दर्द साँझा कर सकती थी क्योंकि वे अंजान लोग थे | मेरी असमर्थता वो भी समझ रही थी , तभी तो वो अचानक उठ खड़ी हुई, रोज की तरह | बच्चे को पीठ पर बाँध , अपनी भेड़-बकरियाँ हाँक फटाफट छोटे -गेट से बाहर चली गई