मनुष्यगण का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ब्रह्मपुराण के अनुसार श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाला मनुष्य अपने पितरों के अलावा ब्रह्म , रुद्र , अश्विनी कुमार , सूर्य , अग्नि , वायु , विश्वेदेव एवं मनुष्यगण को भी प्रसन्न कर देता है।
- ब्रह्मपूराण के अनुसार श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाला मनुष्य अपने पितरो के अलावा ब्रह्म , इन्द्र , रूद्र , अश्विनी कुमार , सुर्य , अग्नि , वायु , विश्वेदेव , एवं मनुष्यगण को भी प्रसन्न कर देता है।
- ऐसा मनुष्य ब्रह्मा , इन्द्र , रूद्र , नासत्य ( अश्विनी कुमार ) , सूर्य , अनल ( अग्नि ) , वायु , विश्वेदेव , पितृगण , मनुष्यगण , पशुगण , समस्त भूतगण तथा सर्पगण को भी संतुष्ट करता हुआ संपूर्ण जगत को संतुष्ट करता है।
- ऐसा मनुष्य ब्रह्मा , इन्द्र , रूद्र , नासत्य ( अश्विनी कुमार ) , सूर्य , अनल ( अग्नि ) , वायु , विश्वेदेव , पितृगण , मनुष्यगण , पशुगण , समस्त भूतगण तथा सर्पगण को भी संतुष्ट करता हुआ संपूर्ण जगत को संतुष्ट करता है।
- जिस समवशरन में विराजमान भव्य जीवों को भगवान उपदेश देकर मोक्ष मार्ग का प्रवर्तन करते हैं तथा चक्रवर्ती आदि मनुष्यगण , देव , तिर्यंच , बारह सभाओं के रूप में बैठकर दिव्य ध्वनि का पान करते हैं , ऐसे समवशरण की रचना , स्थापना निक्षेप से इस कलिकाल में समस्त स्थापना निक्षेपों से श्रेष्ठ है।