मनुष्यलोक का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- स्वर्ग और मनुष्यलोक में सम्पूर्ण भावों के विनाशशील होने से जैसे मृगतृष्णा में जल नहीं होता , वैसे इन दोनों में सुख है ही नहीं।
- ब्रह्मा जी ने कहा हैः ' जो लोग मनुष्यलोक के पोषण की दृष्टि से श्राद्ध आदि करेंगे , उन्हें पितृगण सर्वदा पुष्टि एवं संतति देंगे।
- उस समय श्रीकृष्ण की अग्रपूजा का प्रस्ताव करते समय भीष्म ने उन्हें अपने युग का वेद-वेदांगों का उत्कृष्ट ज्ञाता , अतीव बलशाली तथा मनुष्यलोक में अतिविशिष्ट बताया था।
- जो प्रमाद से इस बात को खाली बिता देते हैं , उनका जीवन मनुष्यलोक में दारिद्रय , पुत्रशोक तथा पाप के कीचड़ से निंदित हो जाता है इसमें संदेह नहीं है।
- शरीर और धनसम्पत्ति से पूर्ण पृथ्वी पर अधिकारयों जिसमें मनुष्यलोक के सब प्रकार के श्रेष्ठ भोगानंद प्राप्त हों , वह ‘मानुषानंद' है।जो मनुष्ययोनि में उत्तम कर्म करके ‘गंधर्व' योिन को प्राप्त होते हैं, उनको ‘मनुष्य गंधर्व' कहते हैं।
- इतने पर भी नचिकेता अपने निश्चय पर अटल रहा तब स्वर्ग के दैवी भोगों का प्रलोभन देते हुए यमराज ने कहा - जो - जो भोग मनुष्यलोक में दुर्लभ हैं उन संपूर्ण भोगों को इच्छानुसार मांग लो।
- इस लोक की सिद्धि ( जीवन्मुक्ति ) तथा परलोक की सिद्धि के ( विदेह मुक्ति के ) लिए या मनुष्यलोक और स्वर्ग आदि लोकों में अधिकारियों की ज्ञान सिद्धि के लिए पुरुषार्थरूप फल देने वाली , मोक्ष के उपायों के उपदेश से परिपूर्ण तथा सारभूत जिस संहिता को कहूँगा , उसे सावधान होकर सुनिये।
- जैसे तीर्थयात्रा या महोत्सव में बहुत से आदमियों का सम्मेलन होता है , वैसे ही मनुष्यलोक से या स्वर्ग आदि लोकों से व्यर्थ ही आये हुए और अमुक स्थान पर हम लोगों की भेंट होगी यों परस्पर संकेत और अभिप्राय से इकट्ठे हुए लोगों में परस्पर स्त्री , पुत्र , मित्र आदि व्यवहार होता है।
- शुद्ध मन में अविहिताचरण ( धर्म - विरुद्ध आचरण ) की भावनायें नहीं उठतीं और अनाचार , दुराचार , पापाचार , भ्रष्टाचार आदि पतनकारी प्रवृत्तियों के अभाव में सदाचार , सद्विचार , सत्यनिष्ठा , क्षमा दया आदि दैवी प्रकृति के लक्षण की प्रधानता हो के कारण मनुष्यलोक में सदा सुख शान्ति का अनुभव करता है।
- शुद्ध मन में अविहिताचरण ( धर्म - विरुद्ध आचरण ) की भावनायें नहीं उठतीं और अनाचार , दुराचार , पापाचार , भ्रष्टाचार आदि पतनकारी प्रवृत्तियों के अभाव में सदाचार , सद्विचार , सत्यनिष्ठा , क्षमा दया आदि दैवी प्रकृति के लक्षण की प्रधानता हो के कारण मनुष्यलोक में सदा सुख शान्ति का अनुभव करता है।