मरणकाल का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- हम एक-दूसरे की सदगति के लिए जीते-जी भी सोचते हैं और मरणकाल का भी सोचते हैं , मृत्यु के बाद का भी सोचते हैं।
- इसको प्राप्त होकर योगी कभी मोह माया मे नहीं फँसता और मरणकाल में भी इस स्थिति मे रहकर परबह्म मे लीन होता है।
- सो भी मरणकाल की जानकारी की बात उठा के यह भी जनाया है कि विशेष रूप से मरण समय के लिए जरूरी बातें यहाँ बता दी गई हैं।
- ध्रुवाकर्षण् ा की इस प्रक्रिया को रोकने के लिए उत् तर में सिर व दक्षिण में पांव करने की प्रथा की व् यवस् था मरणकाल में की गई है।
- तीसरे प्रश्न में प्राण की उत्पत्ति तथा स्थिति का निरूपण करके पिप्पलाद ने कहा है कि मरणकाल में मनुष्य का जैसा संकल्प होता है उसके अनुसार प्राण ही उसे विभिन्न लोकों में ले जाता है।
- बिना आसन किया हुआ जप नीच कर्म हो जाता है और निष्फल हो जाता है | यात्रा में , युद्ध में, शत्रुओं के उपद्रव में गुरुगीता का जप-पाठ करने से विजय मिलता है | मरणकाल में जप करने से मोक्ष मिलता है | गुरुपुत्र के (शिष्य के) सर्व कार्य सिद्ध होते हैं, इसमें संदेह नहीं है | (129, 130)
- बिना आसन किया हुआ जप नीच कर्म हो जाता है और निष्फल हो जाता है | यात्रा में , युद्ध में , शत्रुओं के उपद्रव में गुरुगीता का जप-पाठ करने से विजय मिलता है | मरणकाल में जप करने से मोक्ष मिलता है | गुरुपुत्र के (शिष्य के) सर्व कार्य सिद्ध होते हैं , इसमें संदेह नहीं है | (129 , 130)
- तमाहरामि निर्ऋते रुपस्थादस्पार्शमेनं शत- शारदाय॥ -अथर्व ० ३ / ११ / २ ‘‘ यदि रोगी अपनी जीवनी शक्ति को खो भी चुका हो , निराशाजनक स्थिति को पहुँच गया हो , यदि मरणकाल भी समीप आ पहुँचा हो , तो भी यज्ञ उसे मृत्यु के चंगुल से बचा लेता है और सौ वर्ष जीवित रहने के लिये पुन : बलवान् बना देता है।
- बिना आसन किया हुआ जप नीच कर्म हो जाता है और निष्फल हो जाता है | यात्रा में , युद्ध में , शत्रुओं के उपद्रव में गुरुगीता का जप-पाठ करने से विजय मिलता है | मरणकाल में जप करने से मोक्ष मिलता है | गुरुपुत्र के ( शिष्य के ) सर्व कार्य सिद्ध होते हैं , इसमें संदेह नहीं है | ( 129 , 130 )