मानरहित का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- - यहाँ तुलसीदास एक भक्त भाव में इसी मानरहित भक्त की योग स्थिति की विनय करते हैं कि - जिस प्रकार गुरु की असीम कृपा होती है ।
- भावार्थ : - इसी से तो संत और वेद पुकारकर कहते हैं कि परम अकिंचन ( सर्वथा अहंकार , ममता और मानरहित ) ही भगवान को प्रिय होते हैं।
- निर्मान्- पहली साधना है मान रहित होने की . जैसा कि हमने जाना कि हनुमान जी सदा मान रहित हैं.हमें भी अपने चंचल कपि रूप चित्त को हनुमान जी का ध्यान करते हुए मानरहित करने का प्रयास करते रहना चाहिए.
- भावार्थ : - तुम सदा श्री रामजी को प्रिय होओ और कल्याण रूप गुणों के धाम , मानरहित , इच्छानुसार रूप धारण करने में समर्थ , इच्छा मृत्यु ( जिसकी शरीर छोड़ने की इच्छा करने पर ही मृत्यु हो , बिना इच्छा के मृत्यु न हो ) एवं ज्ञान और वैराग्य के भण्डार होओ॥ 113 ( क ) ॥
- भावार्थ : - तुम सदा श्री रामजी को प्रिय होओ और कल्याण रूप गुणों के धाम , मानरहित , इच्छानुसार रूप धारण करने में समर्थ , इच्छा मृत्यु ( जिसकी शरीर छोड़ने की इच्छा करने पर ही मृत्यु हो , बिना इच्छा के मृत्यु न हो ) एवं ज्ञान और वैराग्य के भण्डार होओ॥ 113 ( क ) ॥