रसवान का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- अभी जिन्दगी तेरी नीरस पडी है मंजिल पा के रसवान बनेगी थक कर हार न जाना मानव जीवन की न फिर चाल थमेगी ।।
- अभी जिन्दगी तेरी नीरस पडी है मंजिल पा के रसवान बनेगी थक कर हार न जाना मानव जीवन की न फिर चाल थमेगी ।।
- आचार्य श्रीपति के शब्दों में कहा जा सकता है कि - : ::शब्द अर्थ बिन दोष गुण, अंहकार रसवान :::ताको काव्य बखानिए श्रीपति परम सुजान
- रसवान , प्रेम रस में पगा समाज ही शांति , संयम , सुरक्षा , सृजन , प्रगति , सह अस्तित्व का आलोक बिखेर सकता है।
- 4 . आचार्य श्रीपति के शब्दों में कहा जा सकता है कि - शब्द अर्थ बिन दोष गुण , अंहकार रसवान ताको काव्य बखानिए श्रीपति परम सुजान 5 .
- हम जैसे कुछ भुक्तभोगी सार्वजनिक अवकाश की ऐसी-तैसी होते देखकर करदाताओं के साथ खुद को भी उस मूक गन्ने की तरह ही मानकर रसवान से रसहीन की गति को प्राप्त होते महसूस करते हैं।
- उन्नवान ९ . रसवान १ ० . इरावान ११ . सर्वौषध १ २ . संभर १ ३ . सहस्वान ऋग्वेद में ९ ४ अवयव कहे गये है : - चतुर्भि : साकं नवति च नामभिश्चक्रं न वृतं व्यतीखींविपत।
- उन्नवान ९ . रसवान १ ० . इरावान ११ . सर्वौषध १ २ . संभर १ ३ . सहस्वान ऋग्वेद में ९ ४ अवयव कहे गये है : - चतुर्भि : साकं नवति च नामभिश्चक्रं न वृतं व्यतीखींविपत।
- दूसरा इस प्रकार है , ”नम: व: पितरो रसाय,नम: व: पितरो शोषाय”,अर्थात पितरों को नमस्कार ! बसन्त ऋतु का उदय होने पर सभी पदार्थ रसवान हो,तुम्हारी कृपा से देश सुन्दर बसन्त ऋतु को प्राप्त हो,पितरों को नमस्कार ! ग्रीष्म ऋतु आने पर सर्व पदार्थ शुष्क हों,देश में ग्रीष्म ऋतु भली प्रकार व्याप्त हों”।
- दूसरा इस प्रकार है , “ नम : व : पितरो रसाय , नम : व : पितरो शोषाय ” , अर्थात पितरों को नमस्कार ! बसन्त ऋतु का उदय होने पर सभी पदार्थ रसवान हो , तुम्हारी कृपा से देश सुन्दर बसन्त ऋतु को प्राप्त हो , पितरों को नमस्कार ! ग्रीष्म ऋतु आने पर सर्व पदार्थ शुष्क हों , देश में ग्रीष्म ऋतु भली प्रकार व्याप्त हों ” ।